आस्था

शारदीय नवरात्र माँ बम्लेश्वरी दरबार सजा …

स्थान: डोंगरगढ़, राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)
अवधि: 22 सितंबर से 1 अक्टूबर 2025 (नवरात्र), 2 अक्टूबर 2025 (विजयादशमी)

मंदिर और तैयारियाँ

  • माँ बम्लेश्वरी का मंदिर पहाड़ की चोटी पर, लगभग 1,600 फीट ऊँचाई पर स्थित है।
  • यहाँ तक पहुँचने के लिए लगभग 1,000 सीढ़ियाँ हैं; साथ ही श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए रोपवे सेवा भी उपलब्ध है।
  • मंदिर प्रांगण और मार्ग को फूलों, रंगोली और दीपों से सजाया गया है
  • प्रबंधन ने नौ दिनों तक चलने वाली आराधना (पूजन, हवन, जागरण आदि) की परंपरागत तैयारियाँ की हैं।

प्रशासनिक इंतज़ाम

  • लाखों की भीड़ को देखते हुए रेलवे और जिला प्रशासन ने विशेष तैयारी की है।
  • 1,000 पुलिस जवान तैनात किए गए हैं।
  • भीड़ नियंत्रण और सुरक्षा हेतु कड़े इंतज़ाम।
  • रेल प्रशासन ने अतिरिक्त ट्रेनें और सुविधाएँ उपलब्ध कराई हैं ताकि श्रद्धालु सुगमता से दर्शन कर सकें।

नवरात्र के प्रमुख दिन

  • एकम (पहला दिन): घटस्थापना
  • अष्टमी: विशेष हवन
  • नवमी: विसर्जन
  • इन नौ दिनों तक चौबीस घंटे भक्तों का ताँता रहेगा।

🟢 माँ बम्लेश्वरी मंदिर का इतिहास और महत्व

  • अनुमान है कि यह स्थल 2,000–2,200 वर्ष पुराना है।
  • स्थानीय परंपराओं के अनुसार, यहाँ के राजाओं, साधुओं और धार्मिक घटनाओं से इसका संबंध रहा है।
  • लोककथाएँ:
    • कहा जाता है कि राजा वीरसेन ने प्रतिज्ञा के बाद यहाँ देवी की स्थापना कराई।
    • कुछ वर्णनों में विक्रमादित्य और पांडवों से भी इस स्थल का संबंध बताया जाता है।
  • ऐतिहासिक साक्ष्य सीमित हैं, लेकिन आस्था और लोकश्रद्धा ने इसे प्राचीन काल से ही शक्ति उपासना का प्रमुख केंद्र बना दिया है।

🟢 नवरात्र का आध्यात्मिक आयाम

  • नवरात्र सिर्फ उत्सव नहीं, बल्कि नौ रूपों की आराधना और आत्मिक अनुशासन का समय है।
  • इसका संदेश है:
    • अज्ञान पर ज्ञान की विजय
    • अधर्म पर धर्म की विजय
  • भक्त उपवास, भजन-कीर्तन, रात्रि-पूजा और जागरण से माँ की आराधना करते हैं।
  • इससे भक्तों को आत्मिक शांति और आशीर्वाद प्राप्त होता है।

🟢 सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

  • डोंगरगढ़ का नवरात्र मेला सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था और पर्यटन को भी गति देता है।
  • इन दिनों हजारों–लाखों श्रद्धालु पहुँचते हैं, जिससे होटल, परिवहन, स्थानीय दुकानें और हस्तशिल्प कारोबार को बढ़ावा मिलता है।
  • सांस्कृतिक दृष्टि से यह पर्व भक्ति, लोक परंपरा और सामाजिक मेलजोल का प्रतीक है।

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