अबूझमाड़ में सुरक्षाबलों की बड़ी कार्रवाई — नक्सली स्मारक ध्वस्त

✔️ कब और कहाँ की घटना?
मंगलवार सुबह नारायणपुर जिले के घने, दुर्गम और अत्यधिक नक्सल प्रभावित अबूझमाड़ क्षेत्र के डोडीमरका इलाके में सुरक्षाबलों ने एंटी-नक्सल ऑपरेशन के दौरान यह कार्रवाई को अंजाम दिया।
🔶 क्या किया सुरक्षाबलों ने ?
सुरक्षाबलों ने वहाँ बने नक्सलियों के एक बड़े स्मारक को ध्वस्त किया।
यह स्मारक नक्सलियों द्वारा अपने 3 कामरेड—
- अनिल दादा
- अजित दादा
- वारुना दादा
की याद में बनाया गया था। यह स्मारक धोबे लंका–महाराष्ट्र बॉर्डर की ओर नक्सलियों का मनोबल बढ़ाने और इलाके में ‘उनकी पकड़’ का प्रतीक था।
🔶 यह कार्रवाई क्यों महत्वपूर्ण है?
1️⃣ नक्सलियों के प्रतीकात्मक ढांचे का सफाया
नक्सली स्मारक अक्सर स्थानीय लोगों पर प्रभाव बनाने, अपनी मौजूदगी दिखाने और संगठन के “शहीद संस्कृति” को फैलाने के लिए बनाए जाते हैं।
इन्हें गिराना नक्सलियों के मनोबल और क्षेत्रीय प्रतीक दोनों को कमजोर करता है।
2️⃣ अबूझमाड़ में ‘सफाई अभियान’ अंतिम चरण में
सूत्रों के मुताबिक, पिछले कुछ महीनों में सुरक्षाबलों ने इस दुर्गम क्षेत्र में सैकड़ों नक्सली स्मारकों को ढहा दिया है।
यह दर्शाता है कि अभियान अब तेज गति और निर्णायक मोड़ पर है।
3️⃣ नए पुलिस कैंपों की स्थापना
सिर्फ स्मारक हटाने ही नहीं—
अबूझमाड़ के अंदरूनी इलाकों में लगातार नए सुरक्षा कैंप खोले जा रहे हैं, ताकि—
- नक्सलियों की मूवमेंट पर रोक लगे
- गांवों-टोले में सरकारी पहुंच बढ़े
- सड़क, बिजली, संचार जैसी सुविधाएँ पहुँचाने में आसानी हो
- सुरक्षा बलों की क्षेत्र पर पकड़ मजबूत हो
4️⃣ नक्सलियों की अंतिम पकड़ कमजोर होने की संभावना
अबूझमाड़ को नक्सलियों का सुरक्षित गढ़ और हेडक्वार्टर ज़ोन माना जाता रहा है।
यहाँ की भौगोलिक स्थिति—घना जंगल, पहाड़, कोई सड़क नहीं—नक्सलियों को दशकों तक बचाती रही।
लेकिन हाल के महीनों में—
- लगातार कैंपों की स्थापना
- अंदरूनी चौकियों का विस्तार
- सड़क निर्माण
- सुरक्षित कॉरिडोर विकसित करना
ने नक्सली नेटवर्क को कमजोर किया है।
🔶 सरकार और पुलिस का लक्ष्य क्या है?
- नक्सली ठिकानों को पूरी तरह ध्वस्त करना
- अबूझमाड़ को मुख्य धारा से जोड़ना
- ग्राम पंचायतों तक प्रशासनिक पहुँच बनाना
- स्थानीय युवाओं को सुरक्षा एवं विकास के माध्यम से मुख्य धारा में लाना
🔶 स्थानीय स्तर पर इसका असर
- ग्रामीणों के बीच सुरक्षा बलों पर भरोसा बढ़ रहा
- नक्सली प्रभाव वाले क्षेत्रों में सरकारी योजनाओं की एंट्री हो रही
- ठेकेदार/कर्मचारी अब अंदरूनी इलाकों में काम करने लगे हैं
- नक्सलियों की “फिर से स्मारक बनाने” की क्षमता कम हो रही है



