बीजापुर

मामला: आदिवासी जमीन हड़पने के आरोप — सियासत गरम

मामला: आदिवासी जमीन हड़पने के आरोप — सियासत गरम

प्रदेश में आदिवासी जमीन हड़पने के आरोपों से जुड़ा विवाद फिर से उभर कर सामने आया है। आरोप है कि तहसील उसूर के संकनपल्ली गाँव में 11 आदिवासी किसानों की लगभग 109 हेक्टेयर जमीन को कूटरचित दस्तावेज बनाकर गैर-आदिवासियों के नाम किया गया।

आरोप है कि जमीन पहले किसी व्यक्ति — रामसिंग यादव के नाम रजिस्टर्ड कराई गई, फिर उसे बेचकर कमलदेव झा नामक व्यक्ति (जगदलपुर निवासी) को हस्तांतरित कर दिया गया। ये सब बिना ग्राम सभा की स्वीकृति, बिना जांच और पूरी गुप्त रूप में हुआ।

राजनीतिक प्रतिक्रिया और मांगें

इस मामले को उजागर किया है विक्रम मंडावी (विधायक, कांग्रेस), जिन्होंने प्रेस वार्ता में यह दावा किया।

उन्होंने राज्य सरकार से उच्च स्तरीय जांच, दोषियों पर FIR, और सभी अवैध रजिस्ट्रियों को रद्द करने की मांग की है।

पीड़ित परिवारों ने चेतावनी दी है कि यदि 10 दिनों में प्रशासन ने कार्रवाई नहीं की, तो वे बड़ा आंदोलन करेंगे।

पृष्ठभूमि — बीजापुर में जमीन विवाद की परतें

ये विवाद अकेला नहीं है। नवंबर 2025 में बीजापुर के अन्य गांवों (जैसे बैल, धरमा, मरकापाल, बड़ेपल्ली) में करीब 127 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जे का मामला भी सामने आया था, जिसमें आरोप था कि एक उद्योगपति — महेंद्र गोयनका — ने आदिवासी परिवारों की जमीन हथियाई थी।

उस मामले में स्थानीय कांग्रेस ने पीड़ितों से मुलाकात की और जांच समिति गठित की।

यह विवाद एक बड़े सामाजिक-सियासी सवाल को फिर खड़ा करता है — आदिवासी भूमि संरक्षण, नाम-रजिस्ट्री, ग्रामसभा की स्वीकृति और पारदर्शिता की आवश्यकता।

सीधे शब्दों में — क्या है मांग

दोषियों पर कड़ी कार्रवाई हो: FIR, रजिस्ट्रियों की जांच/रद्दीकरण।

भूमि स्वामित्व की साफ-सुथरी पुष्टि हो — दस्तावेज, जमीन का इतिहास, ग्रामसभा की मंजूरी।

यदि जमीन वास कार्यों के अनुसार वापस नहीं होगी — गांव व आदिवासी समुदाय मोर्चा खोलने को तैयार।

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