दंतेवाडा

बस्तर दशहरा 2025: 24 जुलाई से आदिवासी परंपरा-अस्था-संस्कृति का अद्भुत संगम…


📅 समय-सीमा: 75-दिन का पर्व

  • बस्तर दशहरा (जिसे बस्तर डशहरा भी कहते हैं) पूरे 75 दिन तक मनाया जाता है, जो इसे विश्व का सबसे लंबा दशहरा बनाता है ।
  • उत्सव की शुरुआत होती है श्रावण कृष्ण अमावस्या (जुलाई में) — इसे स्थानीय भाषा में ‘पात जात्रा’ कहते हैं — जहाँ जंगल से लकड़ियाँ लाकर रथ निर्माण की शुरुआत होती है।
  • अंतिम 10 दिन पारंपरिक नवरात्रि/दशहरा के साथ मेल खाते हैं, और उत्सव अपने चरम पर पहुंचता है ।

👑 ऐतिहासिक जड़ें

  • इसकी शुरुआत 15वीं शताब्दी में महाराजा पुरुषोत्तम देव के शासनकाल में हुई। महाराजा ने पुरी में रथ यात्रा के बाद ‘रथपति’ (चाबुकधारी) का गौरव पाया।
  • तब से एक विशाल 8-पहिया (और कभी-कभार 4‑पहिया) रथ की परम्परा चली आ रही है — जिसे स्थानीय आदिवासी समुदाय भी मित्रता से खींचते हैं।
  • प्रारंभ में राजा, अपने दरबार का नियंत्रण दीवान को सौंपते हैं जब तक उत्सव चल रहा हो — एक आधिकारिक शक्ति हस्तांतरण की रस्म ।

🛕 देवी दंतेश्वरी एवं जन आस्था

  • यह पर्व देवी दंतेश्वरी को समर्पित है, जिन्हें स्थानीय आदिवासी देवी माना जाता है — यह दंतेश्वर मंदिर (दंतेवाड़ा) स्थित है, जो 14वीं सदी का शिव शक्ति पीठ है ।
  • अक्टूबर में पारंपरिक जगदलपुर में देवी की पालकी यात्रा, रथ यात्रा के दौरान निकाली जाती है, जिसे आदिवासी ‘अंगा देवो’ पालकों द्वारा किया जाता है।

🎭 आदिवासी अनुष्ठान व लोकतंत्र

  • अंगा देवो: विभिन्न जनजातियाँ (मुरिया, गोण्ड, भरत) अपनी स्थानीय देवताओं की लकड़ी की पालकियों में यात्रा लाती हैं, जिन्हें ‘अंगा देवो’ कहते हैं ।
  • धोजरा परिधान: पारंपरिक वेश-भूषा, सिरपोशी और लोकवाद्य बजते हैं; स्थानीय नाचों में आत्मा की मुक्ति व तंत्रवादी पारंपरिक तत्व प्रतिबिंबित होते हैं।
  • पर्व का अंतिम दिन ‘मुरिया दरबार’ कहलाता है — जहाँ राजा (पारंपरिक रोयल्टी) आम जनता की समस्या सुनते हैं ।

📌 महत्वपूर्ण समारोह और आकर्षण

समारोहविवरण
पात जात्राअमावस्या की रात जंगल से लकड़ियाँ लाई जाती हैं — रथ निर्माण की शुरुआत
रथ यात्रादेवी की पूजा सहित 8‑पहलियों वाले रथ की जुलूस
अंगा देवो पालकीविभिन्न जनजातियों की पालकियाँ, लोक गीत व नृत्य
मुरिया/भारद्वार (मुरिया दरबार)आदिवासी न्याय की पारंपरिक बैठक, जहां राजा सुनते हैं
रात्रि उत्सवपारंपरिक वाद्य, नृत्य, स्थानीय व्यंजनों का समावेश

🎯 क्यों अनोखा है बस्तर दशहरा?

  • यह राम–रावण कथा पर आधारित नहीं, बल्कि देवी दंतेश्वरी और आदिवासी आत्मा पूजा पर आधारित है।
  • 600 वर्षों से चली आ रही परंपरा, आज भी आदिवासी जनजातियों की सांस्कृतिक पहचान को जीवित रखती है
  • यह उत्सव पर्यटन, हस्तशिल्प (डोक्रा, लकड़ी की कला), लोक संस्कृति और सामाजिक मतदान (दरबार) का संगम है

🗓️ 2025 कार्यक्रम सार

  • प्रारंभ: 24 जुलाई (श्रावण अमावस्या)
  • मुख्य आयोजन: अंतिम 10 दिन (लगभग 14–24 अक्टूबर तक)
  • स्थान: मुख्य रूप से जगदलपुर; साथ ही दंतेवाड़ा, अन्य जंगल-गाँव, नदी घाटी
  • मुख्य आकर्षण: रथ यात्रा, अंगा देवो पालकियाँ, मुरिया दरबार, पारंपरिक लोक नृत्य-गायन

🧭 यात्रा-सुझाव

  • ठहराव: जगदलपुर में अग्रिम बुकिंग करें (3‑4 माह पहले उचित रहेगा) CG Blog
  • स्थानीय गाइड: अनुष्ठानों व जनजाति मान्यताओं को समझने हेतु आवश्यक है CG Blog
  • संवेदनशीलता: आयोजन स्थल पर तस्वीरें लेने के लिए अनुमति लेना जरूरी है — आदिवासी रीति-रिवाजों के प्रति आदर दिखाएँ।

✅ निष्कर्ष

24 जुलाई से शुरू हो रहा बस्तर दशहरा न सिर्फ एक पर्व है, बल्कि 75 दिनों में फैले आदिवासी विश्वास, संस्कृति, लोक कला, न्याय और सामुदायिक जीवन का अद्भुत ताना-बाना है। यह अनुभव भारतीय संस्कृति के अरस्तू पहलुओं की खिड़की खोलता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button