उज्जैन का श्रीकृष्ण कनेक्शन, जानें द्वारकाधीश के जीवन में क्या था महाकाल की नगरी का महत्व

उज्जैन में जन्माष्टमी का पर्व हर साल की तरह इस बार भी बड़े ही धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाएगा. सांदीपनि आश्रम और महाकालेश्वर मंदिर में भगवान की पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है. मंदिर को सजाने से लेकर भगवान का शृंगार तक किया जाता है. कृष्ण भक्त इस दिन भगवान के प्रति श्रद्धाभाव दिखाने के लिए व्रत रखते हैं और आधी रात को भगवान श्रीकृष्ण के जन्म को एक उत्सव की तरह मनाते हैं. इस अवसर पर झांकियां निकाली जाती हैं, जिनमें लड्डू गोपाल के बाल स्वरूप की लीलाओं को झांकियों के जरिए दिखाया जाता है.

भजन-कीर्तन और धार्मिक आयोजन
महाकालेश्वर मंदिर और सांदीपनि आश्रम में खासतौर पर इस दिन भजन-कीर्तन और धार्मिक आयोजन किए जाते हैं, जो भक्तों को भगवान से जोड़ते हैं. यहां आकर भक्तों के मन को शांति मिलती है और मंदिर का माहौल पूरी तरह से कृष्ण भक्ति और श्रद्धा से भर जाता है. यहां भगवान कृष्ण से जुड़ी हर naga788 चीज़ भक्तों को भगवान से जोड़ने का काम करती है. यह उनके बाल स्वरूप में हुए जीवन को याद दिलाने में अहम योगदान देती है.
भगवान कृष्ण और शिव का विशेष संबंध
उज्जैन, जिसे बाबा महाकाल की नगरी कहा जाता है, का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. बता दें कि उज्जैन को भगवान शिव के साथ श्रीकृष्ण से विशेष संबंध है. यह शहर न केवल भगवान शिव के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से भी गहरा संबंध रखता है. उज्जैन के सांदीपनि आश्रम में ही श्रीकृष्ण ने अपने भाई बलराम और मित्र सुदामा के साथ शिक्षा प्राप्त की थी. महाभारत और पुराणों में इस आश्रम का उल्लेख मिलता है, जहां उन्होंने वेदों का ज्ञान और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में महारत हासिल की.