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World Bank और International Monetary Fund (IMF) ने भारत के वित्तीय ढाँचे की समीक्षा की है …

निष्कर्ष निकला है कि भारत का वित्तीय तंत्र पहले की तुलना में अधिक लचीला, विविध और समावेशी हो गया है।
- अर्थ: बैंकिंग-वित्त क्षेत्र में सुधार हुआ है, जोखिम संभालने की क्षमता बढ़ी है।
- असर: निवेश आकर्षित हो सकता है, लेकिन यह स्वतः ही अर्थव्यवस्था में तुरंत उछाल नहीं लाएगा — टिकाऊ सुधार की दिशा में संकेत है।
- संयुक्त FSAP आकलन के अनुसार भारत का वित्तीय तंत्र 2017 के बाद अधिक लचीला, विविध और समावेशी हो गया है — यानी बैंकिंग, नॉन-बैंक वित्त (NBFCs), और पूँजी-बाजारों में सुधार दिखते हैं।
- रिपोर्टें बताती हैं कि डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे (जैसे UPI/Aadhaar-आधारित सेवाएँ) और सरकारी कार्यक्रमों ने वित्तीय पहुँच और समावेशन को बढ़ाया है।

खास प्रमुख निष्कर्ष (और उनका मतलब)
- रेज़िलिएन्स (लचीलापन) बढ़ा — बैंक और कई नॉन-बैंक लेनदार पिछले संकटों और महामारी से उभरने में सक्षम रहे; सिस्टमिक जोखिम पहले जितना तीव्र नहीं दिखता। इसका मतलब: छोटे-बड़े झटकों से अर्थव्यवस्था को संभालने की क्षमता बेहतर हुई।
- विविधीकरण (diversification) — बाजार-फाइनेंसिंग, इन्श्योरेंस और कैपिटल-मार्केट्स की भूमिका बढ़ी है; अर्थव्यवस्था अब सिर्फ बैंकों पर निर्भर नहीं रही। यह वित्तीय चैनलों के विकल्प बढ़ने का संकेत है।
- समावेशन (inclusion) — डिजिटल भुगतान और सरकारी योजनाओं के कारण वित्तीय सेवाओं तक पहुँच खासकर महिलाओं और पिछड़े वर्गों में बढ़ी है — जिससे लंबे समय में खपत और बचत दोनों प्रभावित होंगे।
रिपोर्टों द्वारा दी गई चेतावनियाँ / चुनौती-क्षेत्र
- और सुधार चाहिए — World Bank और IMF दोनों ने कहा है कि भारत को निजी पूँजी-आकर्षण, पूँजी-बाजार की गहराई बढ़ाने और वित्तीय सुधारों को तेज करने की ज़रूरत है, ताकि 2047 तक $30-ट्रिलियन लक्ष्य सम्भव हो सके।
- कठोर-क्षेत्रीय जोखिम मौजूद हैं — कुछ बैंकों और NBFCs में कमजोरियाँ अभी भी हैं; साइबर-सिक्योरिटी, क्लाइमेट-रिस्क और फिनटेक-नियमन जैसे नए जोखिमों को मैनेज करना आवश्यक है।
इसका अर्थ (व्यावहारिक रूप से)
- निवेशकों के लिए: यह सकारात्मक संकेत है — लम्बी अवधि में भरोसा बढ़ेगा और विदेशी/वित्तीय निवेश आकर्षित हो सकता है। परन्तु तुरंत ही बड़ी-scale आर्थिक उछाल की गारंटी नहीं है; सुधारों का असर समय के साथ दिखेगा।
- नीति-निर्माताओं के लिए: अब प्राथमिकता है — निजी पूँजी जुटाना, बांड-मार्केट का विकास, वित्तीय नियमों का सुदृढ़ीकरण और नये जोखिम (क्लाइमेट, साइबर) के अनुरूप निगरानी बढ़ाना।
- आम नागरिकों के लिए: वित्तीय समावेशन के कारण बैंकिंग/क्रेडिट/सेवाओं तक पहुंच बेहतर होगी — जिसका फायदा टैक्स-भुगतान से लेकर कर्ज और बीमा तक दिखेगा।
संक्षेप में — सबसे महत्वपूर्ण तीन बातें
- रिपोर्ट का संदेश सकारात्मक है: वित्तीय सिस्टम अब पहले से मजबूत और व्यापक है।
- ये सुधार “स्थायी” प्रभाव चाहते हैं: उनकी पूरी उपयोगिता तभी दिखेगी जब नीति, निजी-पूँजी और रेगुलेटरी सुधार एक साथ आगे बढ़ें।
- खतरे अभी खत्म नहीं हुए: कुछ सेक्टर्स में kwetsabilties और नए-नए जोखिम बने हुए हैं — इसलिए सतर्क निगरानी ज़रूरी है।



