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रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग में शराब कारोबारियों के घर दी दबिश ACB-EOW ने….

यह घोटाला क्या है, कैसे हुआ, कौन- कौन जुड़े बताए जा रहे हैं, अब तक किन आधिकारिक कार्रवाइयों की गई हैं और आगे क्या हो सकता है।
1) संक्षेप (एक-पंक्ति)
ईडी/एसीबी–EOW की जांच के अनुसार 2019–2022 के बीच छत्तीसगढ़ में डुप्लीकेट/नकली होलोग्राम का इस्तेमाल कर अवैध/अनआकाउंटेड शराब बाजार में पहुँचाई गई — जिससे राज्य को करोड़ों रुपये का नुक़सान हुआ और मामला अब बड़े पैमाने की जांच/गिरफ्तारियों और परिसंपत्ति अटैचमेंट तक जा पहुँचा है।

2) घोटाले का तंत्र — आसान भाषा में कैसे हुआ
- स्टेट आबकारी/लाइसेंस सिस्टम में बोतलों/दुकानों की पहचान के लिए होलोग्राम का उपयोग होता है। जांच के अनुसार इसी व्यवस्था में डुप्लीकेट/नकली होलोग्राम लगाकर नकद/अनऑフィशियल शराब बाजार में बेची गई।
- आरोप है कि होलोग्राम बनाने के लिए टेंडर Noida-आधारित Prizm/Prizm-type कंपनी (प्रिज्म/PHSE) को दिया गया — जिसे इस काम के लिए “पात्र/काबिल” नहीं माना जाना चाहिए था, और टेंडर दिलाने के बदले कमीशन लिया गया। इससे नकली होलोग्राम बनकर पूरे नेटवर्क को कामयाब बनाया गया। (कंपनी निदेशक/संबंधित गिरफ़्तारियों के समाचार रिपोर्ट्स में यह ब्योरा आया है)।
3) आरोपितों / प्रमुख नाम (क्या सामने आया है)
- मीडिया/एजेंसियों और ED/ACB/ EOW की जानकारी के मुताबिक कई उच्च पदस्थ पीआर/ब्यूरोक्रेट और कारोबारी मामले में नामजद हैं — जिनमें पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा, Prizm/PHSE से जुड़े निदेशक (Vidhu/Vidhhu Gupta / Prism) और राज्य के कुछ वरिष्ठ अधिकारी/बिजनेस पार्टनर शामिल बताए गए हैं।
- ED/प्रवर्तन ने इस मामले में बड़ी शिकायत/प्रोसीक्यूशन डॉक्यूमेंट भी प्रस्तुत की — रिपोर्ट्स के मुताबिक ED ने एक विस्तृत (हज़ारों पन्नों वाला) केस कम्प्लेंट/पक्ष प्रस्तुत किया है और यह घोटाला ₹2,000 करोड़+ के पैमाने का आँका जा रहा है।
4) अब तक की प्रमुख आधिकारिक कार्रवाइयाँ (ACB / EOW / ED)
- खोज-तलाशी और छापे: राज्य में कई चरणों में रेड लगीं — विभिन्न ठिकानों पर दस्तावेज़/डिजिटल सबूत बरामद किए गए। ताज़ा खबरों के अनुसार रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग समेत करीब 10 ठिकानों पर EOW/ACB की छापेमारी/दबिश हाल ही में हुई है।
- गिरफ़्तारियाँ और रिमांड: ED/विभिन्न एजेंसियों ने कुछ प्रमुख लोगों को गिरफ्तार या हिरासत में लिया — (कवासी लखमा की ED हिरासत/गिरफ़्तारी की खबरें सार्वजनिक हुईं)।
- प्रोसीक्यूशन/प्रॉपर्टी अटैचमेंट: ED ने PMLA के तहत परिसंपत्तियाँ भी अटैच की हैं और कड़ाई से मनी-लॉन्डरिंग जांच कर रहा है; साथ ही विशेष अदालतों में चार्जशीट/प्लांट दाखिल होने की खबरें भी आईं।
5) कारण/प्रेरक क्या रहा — किससे कितना लाभ?
- एजेंसियों का दावा है कि टेंडर-प्रक्रिया में साजिश/अनियमितता हुई और होलोग्राम सप्लाई की सुविधा से सिंडिकेट ने बड़े पैमाने पर अनौपचारिक/काले लेन-देन को चलाया — जिससे राज्य राजस्व को भारी नुक़सान हुआ। मीडिया रिपोर्ट्स और ED का प्रारंभिक आँकड़ा ₹2,100 करोड़ (या कुछ रिपोर्टों में 2,000–3,200 करोड़ तक) तक का बताता है — संख्या जाँच/फाइनल चार्जशीट पर निर्भर करेगी।
6) राजनैतिक और प्रशासनिक असर
- मामले ने राजनीतिक बहस तेज कर दी है — कई हाई-प्रोफ़ाइल नाम जुड़ने से राजनीतिक दबाव/प्रतिक्रिया बनी हुई है। साथ ही राज्य प्रशासन ने कुछ अधिकारियों पर निलंबन जैसी कार्रवाइयाँ भी की/बतायी गयीं (मीडिया रिपोर्ट्स)। (यहाँ आगे की सुनवाई/कोर्ट निर्णय से और भी खुलासे संभव हैं।)
7) आगे क्या उम्मीद रखें — क्या होगा next
- ED/ EOW की जांच अभी जारी है — और संभावित रूप से और चार्जशीट, परिसंपत्ति अटैचमेंट, और अदालत में लंबी कानूनी प्रक्रिया होगी। प्रमुख बिंदु जिन्हें देखना होगा:
- ED/विशेष अदालत में दायर अंतिम आरोपपत्र/प्रोसीक्यूशन की सामग्री (कितने पन्ने/कौन-कौन के खिलाफ) — इससे दोषियों के विरुद्ध साक्ष्य का आकार स्पष्ट होगा।
- और गिरफ्तारियाँ/छापे — एजेंसियाँ अक्सर केस की तह तक जाकर और भी सबूत जुटाती हैं (ताज़ा छापेमारी इसी कड़ी का हिस्सा हैं)।
- कोर्ट-प्रक्रिया और संभावित निलंबन/वापसी-नीतियाँ — प्रशासनिक सुधार और टेंडर-प्रक्रिया में बदलाव की माँग भी उठ सकती है।
8) स्रोतों का संक्षेप (मुख्य, भरोसेमंद संदर्भ)
- ED की आधिकारिक प्रेस-रिलीज़ / रिपोर्टें (जिनमें केस के प्रारम्भिक निष्कर्ष और खोज-तलाशी का उल्लेख है)।
- बड़े समाचार माध्यमों की रिपोर्ट्स — Times of India, Hindustan/Amar Ujala आदि ने भी विस्तृत कवरेज दिया है (ED की फ़ाइलिंग, 7-हज़ार पन्नों की रिपोर्ट का जिक्र, और हालिया छापों की ख़बरें)।