पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई और ईडी की गिरफ्तारी‑संबंधी शक्तियों और अधिकार क्षेत्र को चुनौती दी है।

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनके बेटे चैतन्य बघेल ने सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई और ईडी की गिरफ्तारी‑संबंधी शक्तियों और अधिकार क्षेत्र को चुनौती दी है। उन्होंने अग्रिम जमानत (anticipatory bail) याचिका में मांग की है कि उन्हें गिरफ्तार न किया जाए और जांच में सहयोग करने का सामना‑सुनावली का मौका दिया जाए। सुनवाई सोमवार, 4 अगस्त 2025 को न्यायाधीशों सूर्यकांत व जॉयमल्या बागची की पीठ के समक्ष तय है।

🧾 मुख्य बिंदु:
1. आरोपों की पृष्ठभूमि
- मामला 2,161 करोड़ रुपये के कथित शराब घोटाले (2019–22) से जुड़ा है जिसमें कोयला और ‘महादेव’ सट्टा ऐप जैसे अन्य विवादों में भी बघेल परिवार का नाम सामने आया है
- CBI ने भारत सरकार द्वारा स्थापित CSMCL कंपनी के अंतर्गत हुए सिंडिकेट और अनुबंध गड़बडि़यों का हवाला दिया है; ED ने ₹16.7 करोड़ मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप लगाए हैं, जिसमें चैतन्य बघेल को मुख्य रूप से शामिल बताया गया है
2. याचिका में उठाए गए तर्क
- राज्य सरकार की पूर्व में रद्द की गई सहमति के आधार पर, उन्होंने दलील दी है कि सीबीआई और ईडी की राज्य में कार्रवाई तब तक वैध नहीं मानी जा सकती, जब तक राज्य का अनुमोदन न हो
- साथ ही, चैतन्य की गिरफ्तारी राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित बताए जाने से इस पूरे कार्रवाई को “राजनीतिक निशाना” बताया गया है
3. राजनीतिक और न्यायिक संदर्भ
- चैतन्य बघेल की ED द्वारा 18 जुलाई को गिरफ्तारी हुई थी, जिसके बाद उन्हें अदालत ने पांच दिन की न्यायिक हिरासत पर भेज दिया (जो 4 अगस्त तक है)
- पूरे मामले को लेकर कांग्रेस ने सियासी मोर्चे पर भी प्रतिरोध दर्ज किया है और इसे केंद्र की राजनीतिक प्रतिशोध की कोशिश बताया है
🔍 संग्रहीत समीक्षा:
बिंदु | विवरण |
---|---|
कितना | ₹2,161 करोड़ का कथित शराब घोटाला |
अधिकारियों | ED द्वारा चैतन्य की गिरफ्तारी, CBI और ED द्वारा छापेमारी |
कानूनी दलीलें | जांच की वैधता, केंद्रीय एजेंसियों की क्षमता, अग्रिम जमानत |
राजनीतिक आरोप | केंद्र द्वारा विपक्षी नेता को निशाना बनाना |
सुप्रीम कोर्ट सुनवाई | 4 अगस्त 2025 |
इस केस की सुनवाई केवल व्यक्तिगत अग्रिम जमानत के बारे में नहीं बल्कि यह संघीय संरचना में केंद्र बनाम राज्य एजेंसियों की अधिकार सीमाओं के न्यायिक समीकरण को भी तय कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला भविष्य में यह निर्धारित करेगा कि क्या किसी राज्य की सहमति के बिना केंद्रीय जांच एजेंसियां कानूनी रूप से उस राज्य में कार्रवाई कर सकती हैं।