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लेबर कोड्स के खिलाफ ट्रेड यूनियनों का बिगुल, 26 नवंबर को देशभर में विरोध प्रदर्शन….

यह विरोध क्यों हो रहा है?

भारत सरकार ने 29 मौजूदा श्रम कानूनों को हटाकर चार नए लेबर कोड बनाए हैं, जिनका उद्देश्य सरकार के अनुसार श्रम कानूनों को सरल, आधुनिक और उद्योग–अनुकूल बनाना है।

लेकिन ट्रेड यूनियनों का आरोप है कि ये कोड:

  • मजदूरों के अधिकारों को कमजोर करते हैं
  • नौकरी सुरक्षा समाप्त करते हैं
  • यूनियन बनाने और हड़ताल करने के अधिकार पर रोक लगाते हैं
  • न्यूनतम वेतन और काम के घंटे बढ़ाने जैसे सुरक्षा प्रावधानों को कमजोर करते हैं

इसलिए इन्हें “मजदूर-विरोधी, लोकतंत्र-विरोधी और पूँजीपति-परस्त” बताया जा रहा है।


📌 विरोध कौन कर रहा है?

इस आंदोलन की एक अहम बात यह है कि देश की लगभग सभी बड़ी केंद्रीय ट्रेड यूनियनें एकजुट हो गई हैं।

इनमें शामिल हैं:

  • INTUC
  • CITU
  • AITUC
  • HMS
  • ACTU
  • AIUTUC
  • SEWA
  • और कई स्वतंत्र औद्योगिक संगठन

इनके साथ संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) भी जुड़ रहा है, जिससे यह आंदोलन मजदूर + किसान एकजुट संघर्ष का रूप ले रहा है।


📌 आंदोलन कब और कैसे होगा?

🗓 तारीख: 26 नवंबर 2025
📍 स्थान: पूरे भारत में

छत्तीसगढ़ में योजना:

  • मजदूर अपने कार्यस्थलों पर काली पट्टी लगाकर विरोध करेंगे
  • शाम 5:30 बजे रायपुर के घड़ी चौक स्थित डॉ. भीमराव अंबेडकर प्रतिमा के सामने संयुक्त प्रदर्शन
  • राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा जाएगा

📌 ट्रेड यूनियनों की मुख्य मांगें:

मांगविवरण
❌ चार लेबर कोड वापस करोमौजूदा 29 श्रम कानून फिर लागू करने की मांग
📣 ILC (Indian Labour Conference) बुलाओमजदूरों को संवाद प्रक्रिया में शामिल करने की मांग
❌ श्रम शक्ति नीति 2025 वापस लोइसे “मजदूर-अधिकार समाप्त करने वाली नीति” बताया गया
👩‍🏭 मजदूर सुरक्षा बहाल करोनौकरी सुरक्षा, न्यूनतम वेतन, सामाजिक सुरक्षा अधिकारों की बहाली

📌 यूनियनों के आरोप और तर्क

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के अनुसार:

  • सरकार ने बिना मजदूरों और यूनियनों की सहमति लिए अधिसूचना जारी की
  • सभी विरोध, बैठकें और अपीलों को नजरअंदाज किया गया
  • नीति का उद्देश्य केवल कॉर्पोरेट सेक्टर और निवेशकों को लाभ देना है
  • यह कदम “श्रमिकों की भावी पीढ़ियों के अधिकार छीनने वाला ऐतिहासिक हमला” है

कुछ यूनियनों ने इसे तक कहा:

“यह मजदूरों की आजीविका पर नरसंहार जैसा हमला है।”


📌 सरकार का पक्ष (संक्षेप में)

सरकार की ओर से कहा गया है कि:

  • नया ढांचा उद्योगों में रोजगार और निवेश बढ़ाएगा
  • नियमों से जटिलता हटेगी
  • अंतरराष्ट्रीय स्तर की श्रम संरचना बनेगी
  • श्रमिकों को एकल सामाजिक सुरक्षा कोड के तहत लाभ मिलेगा

लेकिन इस तर्क को यूनियनों ने खारिज कर दिया है।


📌 आंदोलन की बड़ी तस्वीर

यह आंदोलन सिर्फ एक विरोध नहीं, बल्कि:

🔹 मजदूर-किसान संयुक्त प्रतिरोध
🔹 सरकार की श्रम-और आर्थिक नीतियों को चुनौती
🔹 2025 के बजट, चुनावी संदर्भ और आर्थिक सुधारों से जुड़ा संघर्ष

है।


निष्कर्ष

26 नवंबर 2025 का यह विरोध महज एक दिन का कार्यक्रम नहीं, बल्कि आने वाले समय में देशव्यापी श्रमिक आंदोलन की शुरुआत माना जा रहा है। यूनियनों का दावा है कि अगर सरकार पीछे नहीं हटती तो:

👉 हड़तालें
👉 सड़कों पर आंदोलन
👉 और बड़े स्तर का औद्योगिक ठहराव

देखने को मिल सकता है।

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