खैरागढ़ महोत्सव 2025 का भव्य समापन: शास्त्रीय संगीत, लोकधुनों और सांस्कृतिक विरासत का अद्भुत संगम

छत्तीसगढ़ के खैरागढ़-छुईखदान-गंडई जिले में आयोजित तीन दिवसीय ‘खैरागढ़ महोत्सव 2025’ का शुक्रवार रात भव्य समापन हुआ। कला और संगीत की धुनों से सराबोर यह महोत्सव इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध प्रांगण में आयोजित किया गया, जहां तीनों दिन हजारों दर्शकों की उपस्थिति रही। देश–विदेश से आए कलाकारों की प्रस्तुतियों ने परिसर को सुर, ताल और नृत्य की अनुपम ऊर्जा से भर दिया।
समापन समारोह में छत्तीसगढ़ के राज्यपाल रमेन डेका, रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल, और खैरागढ़ विधायक यशोदा वर्मा विशेष रूप से उपस्थित रहे। मंच पर कलाकारों की प्रस्तुतियों ने दर्शकों को देर रात तक बांधे रखा और कार्यक्रम लंबे समय तक याद रहने वाला साबित हुआ।

पहले दिन: अंतरराष्ट्रीय जुगलबंदी और विविध प्रस्तुतियों ने बटोरी वाहवाही
महोत्सव का पहला दिन कला साधकों और दर्शकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बना।
- अमेरिका के प्रो. बेंजामिन बून और कुलपति प्रो. लवली शर्मा की अनूठी जुगलबंदी ने संगीतप्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
- तबला वादक पं. गौरीशंकर कर्मकार ने अपनी अद्भुत ताल-लय से संपूर्ण वातावरण को उत्सवमय बना दिया।
- वृंदावन की गायिका विदुषी आस्था गोस्वामी की भक्ति-संगीत प्रस्तुतियों ने आध्यात्मिक रंग घोल दिए।
- वहीं ‘सोनहा बदर’ समूह की लोकनृत्य और संस्कृति पर आधारित प्रस्तुति ने बस्तर और छत्तीसगढ़ की जड़ों को जीवंत किया।
इन प्रस्तुतियों के बाद से ही महोत्सव का रंग और स्तर काफी ऊंचा हो गया, जिसने दर्शकों में अगले दो दिनों के लिए उत्सुकता भर दी।
दूसरे दिन: विरासत, प्रेरणा और युवा कलाकारों की दमदार उपस्थिति
दूसरे दिन मंच की गरिमा बढ़ाने पहुंचे मुख्य अतिथि राजा आर्यव्रत सिंह ने विश्वविद्यालय को दान में दिए गए अपने पूर्वजों के योगदान को याद किया और कहा कि यह संस्थान आज भी भारतीय कला-संगीत परंपरा को आगे बढ़ाने का केंद्र है।
उन्होंने विद्यार्थियों को “समर्पण और साधना की निरंतरता” का संदेश देते हुए प्रोत्साहित किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं कुलपति प्रो. (डॉ.) लवली शर्मा को उनके नवाचारों और विश्वविद्यालय की उत्कृष्ट प्रशासनिक पहल के लिए आत्मनिर्भर खैरागढ़ अभियान द्वारा सम्मानित किया गया।
दूसरे दिन विशेष रूप से विद्यार्थियों की सामूहिक प्रस्तुतियाँ छाई रहीं—
- सितार
- सरोद
- वायलिन
- तबला
इन युवा कलाकारों की टीमवर्क और समर्पण ने कार्यक्रम को और जीवंत, ऊर्जावान और कलात्मक बना दिया।
तीसरे दिन और समापन समारोह: सुर–ताल का चरम और दर्शकों की अभूतपूर्व सहभागिता
महोत्सव के अंतिम दिन शास्त्रीय और लोक-संगीत के संगम ने कार्यक्रम को नई ऊँचाइयाँ दीं। दर्शक देर रात तक हॉल में जमे रहे और हर प्रस्तुति पर खूब तालियां गूंजती रहीं।
मुख्य प्रस्तुतियाँ—
- पं. हरीश तिवारी का गहन और मन को स्पर्श करने वाला शास्त्रीय गायन
- पद्मभूषण पं. बुधादित्य मुखर्जी का विश्वस्तरीय सितार वादन
- व्योमेश शुक्ला एवं समूह की ‘राम की शक्ति पूजा’—एक सशक्त नाट्य-संगीत प्रस्तुति
- डॉ. पीसीलाल यादव के नेतृत्व में दूधमोंगरा समूह की लोक-सांस्कृतिक प्रस्तुति, जिसने ग्रामीण परंपराओं की आत्मा को मंच पर उतार दिया
इन प्रदर्शनियों ने छत्तीसगढ़ से लेकर भारत की परंपरागत कला-शैली को सूक्ष्मता और भव्यता के साथ सामने रखा।
सांस्कृतिक विरासत को नई दिशा
महोत्सव में पहुंचे सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि उन्होंने संस्कृति मंत्री रहते हुए इस महोत्सव की शुरुआत की थी और इतने वर्षों बाद फिर से इस कार्यक्रम का हिस्सा बनना भावनात्मक और गर्व का क्षण है।
उन्होंने इस विश्वविद्यालय को विश्वस्तरीय पहचान दिलाने के लिए एक बार फिर समर्पित होकर काम करने की बात कही।
कुलपति डॉ. लवली शर्मा ने भी विश्वविद्यालय के विकास से जुड़े प्रस्ताव राज्यपाल को सौंपे, जिनके शीघ्र निराकरण का आश्वासन दिया गया।
खैरागढ़ की पहचान—कला, संगीत और समृद्ध परंपराएँ
तीन दिनों तक चले इस महोत्सव ने एक बार फिर यह सिद्ध किया कि खैरागढ़ भारतीय शास्त्रीय संगीत और लोककला की धड़कन है।
यह कार्यक्रम न सिर्फ कलाकारों को बड़ा मंच देता है, बल्कि खैरागढ़ को कला-परंपरा के एक वैश्विक केंद्र के रूप में उभारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।



