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कंगना रनौत ने हाल ही में एक इंटरव्यू में स्पष्ट रूप से कहा है कि सांसद का काम उन्हें उतना सहज नहीं लग रहा..

जितना उन्होंने सोचा था — यह भूमिका उनके लिए बेहद डिमांडिंग (माँग-भरी) निकली। ✨
🎙️ कंगना के बोल — प्रमुख बातें:
- “सांसद की नौकरी इतनी डिमांडिंग है”
- उन्होंने बताया कि जब उन्हें उम्मीदवार बनने का प्रस्ताव मिला, तो कहा गया कि “60–70 दिन संसद में रहोगी, बाकी समय फ़िल्मों पर भी काम कर सकती हो।” लेकिन हकीकत में सांसद की जिम्मेदारियाँ इसका दोगुना भारी निकलीं ।
- “राजनीति बिल्कुल फिल्म जितनी आसान नहीं”
- कंगना ने साफ कहा कि “पॉलिटिक्स फिल्मों की तुलना में काफी मुश्किल काम है” ।
- स्थानीय शिकायतें — सड़कों, नालियों की मरम्मत
- वे बताती हैं कि लोग अक्सर उनसे ऐसी शिकायत लेकर आते हैं, जबकि ये राज्य सरकार और नगर पालिका की जिम्मेदारी होती है ।

- “राजनीति एक महंगा शौक”
- सांसद वेतन (~₹1.24 लाख/माह) मिलने के बावजूद, रोजमर्रा के खर्चों, कर्मचारियों, यात्रा आदि पर लाखों खर्च हो जाते हैं — इसलिए यह एक “महंगा शौक” बन जाता है और वे कहती हैं कि “ईमानदार सांसदों को कोई साइड जॉब रखना चाहिए”।
- आर्थिक दबाव पर रियायत
- कंगना ने कहा कि सांसद के तौर पर, उनके पास औसत वेतन शेष बचत मात्र ₹50–60 हजार होती है, बाकी खर्च उनकी संपत्ति बेचकर या अन्य माध्यमों से निकलता है।
✅ निष्कर्ष:
बिंदु | विवरण |
---|---|
डिमांडिंग भूमिका | सांसद के रूप में कड़ी जिम्मेदारी, कानूनी, प्रशासनिक और जनसमस्याओं का बोझ |
वित्तीय भार | उच्च खर्चों के कारण वेतन काफी कम पड़ता है — इसलिए कई सांसद दूसरी आय भी रखते हैं |
राजनीतिक अनुभव | उन्होंने स्वीकार किया कि राजनीति उनके लिए अभूतपूर्व और चुनौतीपूर्ण रही है |
भावी रुख | कंगना ने संकेत दिए हैं कि उन्हें यह व्यवसाय इतना आकर्षक नहीं लगा — वे स्थिति से सख्ती से जूझ रही हैं |