छत्तीसगढ़
हरेली तिहार का ऐतिहासिक महत्व और लोक रीति-रिवाज

हरेली तिहार छत्तीसगढ़ का पहला प्रमुख पारंपरिक पर्व है और इसका इतिहास व लोक परंपराएँ काफी रोचक हैं।
1. ऐतिहासिक महत्व
- खेती-किसानी का आरंभिक पर्व – हरेली का सीधा संबंध खेती से है। यह श्रावण अमावस्या के दिन (सावन महीने की पहली अमावस्या) मनाया जाता है, जब किसान धान की बुआई पूरी कर खेतों की हरियाली का स्वागत करते हैं।
- छत्तीसगढ़ की कृषि संस्कृति का प्रतीक – पुराने जमाने में इस दिन किसान अपने हल, बैल, औजार और कृषि उपकरणों की पूजा कर आभार जताते थे।
- प्राकृतिक ऊर्जा का सम्मान – ‘हरेली’ शब्द हरियाली से निकला है, यानी यह पर्व धरती की हरियाली और प्रकृति के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है।
- स्वदेशी और लोक विश्वास – लोक मान्यता है कि इस दिन नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और खेत-खलिहान में शुभ शक्ति का वास होता है।

2. लोक रीति-रिवाज
(i) कृषि यंत्र और बैल पूजा
- किसान इस दिन अपने हल, बैल, औजार, हँसिया, गैंती आदि उपकरणों को गोबर और हल्दी से लीपकर पूजा करते हैं।
- बैलों को स्नान कराकर उन्हें सजाया जाता है और बैल दौड़ जैसी प्रतियोगिताएँ भी आयोजित होती थीं।
(ii) गेड़ी चढ़ना
- गेड़ी लकड़ी से बनी एक ऊँची पाँव वाली चलने की युक्ति है।
- बच्चे और युवक गेड़ी पर चढ़कर गांव में घूमते हैं, इसे शुभ माना जाता है।
- इसे धरती और हरियाली से जुड़ने का प्रतीक माना जाता है।
(iii) झाड़-फूंक और औषधीय परंपरा
- इस दिन करेला, नीम, बैला (बेल), बड़, गूलर, अमरूद आदि की टहनियों से बने झाड़ू (झाड़-फूंक) से नजर दोष और नकारात्मक शक्तियों को दूर किया जाता है।
- लोग अपने घरों और पशुओं को इन टहनियों से झाड़कर बुरी आत्माओं को भगाने का विश्वास रखते हैं।
(iv) लोकभोजन और प्रसाद
- इस दिन खासकर थूरा भाजी (अरबी पत्ते की सब्जी), पकोड़े, चेंच भाजी और धान से बने व्यंजन खाए जाते हैं।
- करेले का सेवन भी अनिवार्य माना जाता है।
(v) लोक खेल और मनोरंजन
- गांवों में कबड्डी, रस्साकशी, बैल दौड़, गेड़ी दौड़ जैसे खेल होते हैं।
- महिलाएँ और बच्चे सावन गीत गाते हुए झूला झूलते हैं।
3. धार्मिक और सामाजिक संदेश
- धरती और प्रकृति के प्रति आभार – यह पर्व किसानों को याद दिलाता है कि प्रकृति, भूमि और पशुधन ही जीवन का आधार हैं।
- सामाजिक एकता – पूरे गांव में सामूहिक पूजा और आयोजन से साझा संस्कृति और भाईचारा बढ़ता है।
- स्वास्थ्य और सुरक्षा – औषधीय पौधों से झाड़-फूंक और करेले का सेवन स्वास्थ्य रक्षा की लोक-चिकित्सा पद्धति का हिस्सा माना जाता है।
संक्षेप में, हरेली तिहार केवल खेती से जुड़ा पर्व नहीं बल्कि प्रकृति, हरियाली, औषधीय ज्ञान और सामूहिक लोकजीवन का उत्सव है।