छत्तीसगढ़

गृहमंत्री शाह से PCC चीफ दीपक बैज का सवाल, बस्तर के खदानों को निजी हाथों क्यों बेचा गया?… सरकार के खिलाफ ननकीराम कंवर के धरने का किया समर्थन..

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बस्तर दौरे को लेकर केंद्र / राज्य सरकार पर तीखे सवाल उठाए — विशेषकर बस्तर की खदानों, नंदराज पहाड़ की लीज, नागरनार-स्टील प्लांट की स्थिति और आदिवासी मुद्दों पर। उन्होंने पूर्व गृहमंत्री ननकीराम कंवर के धरने का समर्थन किया और भाजपा के कुछ नेताओं — रेणुका सिंह व पुरंदर मिश्रा — के दशहरे-संबंधी बयानों पर आलोचना की।

विस्तार में — क्या कहा, क्यों अहम है, और पृष्ठभूमि

  1. दीपक बैज के मुख्य-प्रश्न (संक्षेप)
    बैज ने अमित शाह से आठ बड़े सवाल पूछे — जिनमें प्रमुख हैं: क्या बस्तर के खदान (तीन खदानों) निजी समूहों को इसलिए दे दिए गए; नंदराज पहाड़ की लीज क्यों बनी हुई है; क्या अडानी/अंबानी जैसे बड़े उद्योगपति बस्तर में घुसेंगे; NMDC का मुख्यालय बस्तर क्यों नहीं लाया गया; नागरनार स्टील प्लांट का निजीकरण होगा क्या; रेल कनेक्टिविटी और आरक्षण संशोधन पर सवाल। ये सवाल सार्वजनिक रूप से रखे गए हैं ताकि अमित शाह इनका जवाब दें।
  2. ननकीराम कंवर का धरना — और कांग्रेस का समर्थन
    पूर्व गृहमंत्री ननकीराम कंवर (भाजपा के वरिष्ठ नेता) ने कोरबा कलेक्टर हटाने की मांग और प्रशासनिक मामलों को लेकर मुख्यमंत्री निवास के सामने धरने का ऐलान किया — उन्हें पुलिस/प्रशासन ने रोककर नजरबंद भी किया गया बताया जा रहा है। दीपक बैज ने कंवर के धरने को समर्थन देते हुए कहा कि यह वजह बताती है कि प्रशासनिक असंतुलन है और भाजपा के ही बड़े नेता आवाज उठा रहे हैं।
  3. बस्तर-खदानें और नंदराज (पृष्ठभूमि)
    बस्तर (बिलासपुर/दंतेवाड़ा/बैलाडीला) क्षेत्र की खनिज-संपदा, विशेषकर लौहअयस्क, वर्षों से विवादों में रही है। 2019 में भी नंदराज-पहाड़ / बैलाडीला से संबंधित NMDC-के-आदेशों और कुछ मामलों में निजी कॉन्ट्रैक्ट (जैसे अडानी से जुड़ी चर्चाएँ) को लेकर आदिवासी विरोध और प्रदर्शन हुए थे — इसलिए बैज के सवालों का ऐतिहासिक संदर्भ मौजूद है। (यानी ये मुद्दे अचानक नहीं उठे; लंबे समय से संवेदनशील रहे हैं)।
  4. नागरनार-स्टील प्लांट व NMDC पर चिंता
    Nagarnar Steel (NMDC-Steel) और NMDC की नीतियों को लेकर पिछले कुछ सालों से निजीकरण/डी-मेरजर और प्राइवेट बिड जैसी चर्चाएँ रहीं — इसलिए बैज का सवाल कि क्या केंद्र/राज्य Bastar-विकास के वादों पर कायम रहेगा, राजनीतिक रूप से संवेदनशील है।
  5. रेणुका सिंह और पुरंदर मिश्रा के बयान — बैज की प्रतिक्रिया
    — रेणुका सिंह (भाजपा विधायक/पूर्व केंद्रीय मंत्री) ने दशहरा-मंच से कहा कि “सरकार में भी रावण हैं” — इस बयान पर कांग्रेस ने सवाल उठाया कि किसे वह रावण कह रही हैं। बैज ने इसका तंज कसा और सरकार में “14 सिर वाले रावण” जैसी तंज़ी टिप्पणी की।
    — पुरंदर मिश्रा के दशहरे-सम्बंधी विवादित कथन (जो सोशल मीडिया पर चर्चित हुए) पर बैज ने कहा कि ऐसे बयान राम-विरोधी/अनुचित हैं और BJP को अपने विधायक-पर कार्रवाई करनी चाहिए।

राजनीतिक मायने और क्या हो सकता है (विश्लेषण)

  • अल्पसंख्यक/आदिवासी संवेदनशीलता: बस्तर का सामाजिक-आर्थिक संतुलन खनन और जमीन-अधिकार के मसलों पर बहुत नाज़ुक है। खनन-लीज या बड़े उद्योगपतियों की एंट्री पर स्थानीय असंतोष चुनावी रूप से असर डाल सकता है — इसलिए कांग्रेस इसे एग्वेट करके भाजपा पर दबाव बना रही है।
  • नक्सल/सुरक्षा-दृष्टि: अमित शाह का बस्तर दौरा अक्सर सुरक्षा-संदर्भ और नक्सल-समर्पण/प्रगति के तौर पर दिखाया जाता है; बैज ने इसे ‘इवेंट-बनाने’ का आरोप लगाया ताकि सरकार सुरक्षा उपलब्धि दिखा सके — यह दोनों दलों के लिए प्रचार-मुक़ाबले का मुद्दा बनता है
  • स्थानीय vs केन्द्रीय अदायगी: NMDC/Nagarnar जैसे प्रोजेक्ट के प्रशासन-फैसले (केंद्र/PSU नीतियाँ) और स्थानीय अधिकारों/ग्रामीणों की सहमति के बीच टकराव जारी रह सकता है — यदि स्थानीय विरोध लगातार बना रहा तो परियोजनाओं में देरी या संशोधन आ सकते हैं।
  • नेतृत्व संघर्ष का संकेत: ननकीराम कंवर जैसे वरिष्ठ नेता का अपनी ही सरकार के खिलाफ धरने पर बैठना राजनीतिक असंतोष और अंदरूनी संघर्ष का संकेत हो सकता है — इसे विपक्ष (कांग्रेस) तीखा प्रचार सामग्री बना रहा है।

आगे क्या होने की संभावना (संभाव्य परिदृश्यों का त्वरित अंदाज़ा)

  • केंद्र/राज्य से स्पष्टीकरण — सरकार इन सवालों (खदान, नंदराज-लीज़, नागरनार की स्थिति) पर आधिकारिक बयान दे सकती है या स्थानीय नेताओं से संपर्क दिखा सकती है।
  • पुलिस-प्रशासनिक कार्रवाई/राजनीतिक हलचल — ननकीराम कंवर के मामले में पहले से ही रोक-टोक/नजरबंदी की खबरें हैं; आगे राजनैतिक हलचल बढ़ सकती है।
  • स्थानीय प्रतिरोध/आंदोलन का फिर उभार — अगर खदानों/लीज़ पर जमीन-हितों का मामला लोगों तक जल रहा है तो प्रदर्शन/ग्रामीण विरोध फिर सक्रिय हो सकता है (इतिहास में ऐसा देखा गया है)।

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