छत्तीसगढ़

धर्मांतरण-तस्करी मामले में दो ननों को मिली जमानत..


बिलासपुर की एनआईए अदालत ने दो केरल ननों और एक आदिवासी व्यक्ति को मानव तस्करी और धर्मांतरण के आरोपों पर सशर्त जमानत दी। उन्हें 50‑50 हजार रुपये के बॉन्ड पर रिहा किया गया और पासपोर्ट जमा करना पड़ा। 

Cardinal Baselios Cleemis Catholicos ने अदालत पर भरोसा जताया और न्यायिक प्रक्रिया की स्वतंत्रता पर बल दिया। 

छत्तीसगढ़ की बिलासपुर एनआईए अदालत ने दो केरल की ननों (Preethi Mary और Vandana Francis) और एक आदिवासी युवक (Sukaman Mandavi) को मानव तस्करी और जबरन धर्मांतरण के आरोपों पर सशर्त जमानत दी है। यह सुनवाई शनिवार, 2 अगस्त 2025 को विशेष न्यायाधीश सोलाप ढेरे न लगाकर—सराजुद्दीन कुरैशी की अदालत में हुई थीI


⚖️ न्यायिक आदेश की प्रमुख शर्तें

  • मकान जमानत (bond): प्रत्येक आरोपी को ₹50,000 जमा करना होगा, दो गारंटर के साथ।
  • पासपोर्ट जमा करना अनिवार्य—कोर्ट ने उन्हें देश छोड़ने से प्रतिबंधित किया है।
  • आपराधिक प्रक्रिया में सहयोग तथा पुलिस को हर पंद्रह दिनों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना होगा।

न्यायाधीश ने स्पष्ट कहा कि FIR “केवल आशंका और भ्रामक संदेह” पर आधारित थी, न कि ठोस तथ्यात्मक साक्ष्य परT


🧑‍⚖️ आरोपों और बचाव पक्ष की दलीलें

  • आरोप यह था कि तीन आरोपी नारायणपुर की तीन युवतियों को नौकरी का बहाना देकर — अधर में जबरन काम करने और धर्मांतरण हेतु ले जा रही थीं। शिकायत बजरंग दल कार्यकर्ता ने की थी, और पुलिस ने रायलवे पुलिस (GRP) के माध्यम से उन्हें दुर्ग रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार किया था।
  • बचाव पक्ष ने तर्क दिया:
    • युवतियाँ स्वयं से अगरा नौकरी के लिए जा रही थीं, तीनों वयस्क हैं,
    • वे कई वर्षों से ईसाई धर्म की अनुयायी थीं,
    • आरोप “बिल्कुल निराधार” है,
    • माता-पिता ने पुलिस को अभिप्रमाणित बयान दिए कि conversion या trafficking का कोई दबाव नहीं था।

🙏 चर्च नेताओं व धर्मनिरपेक्ष समूहों की प्रतिक्रियाएँ

  • Cardinal Baselios Cleemis Catholicos, केरल कैथोलिक बिशप्स काउंसिल के अध्यक्ष, ने न्यायप्रणाली पर भरोसा जताया: “यह एक नया अध्याय नहीं, बल्कि विधिक प्रक्रिया की शुरुआत है… यह मामला केवल जमानत का नहीं बल्कि सत्य की लड़ाई है।” उन्होंने याद दिलाया कि न्यायपालिका का स्वतंत्र निर्णय ही इस मामले में निष्पक्षता बनाए रखता है।
  • कोर्णर महान प्रदर्शनकारी, जैसे कि ट्रिचुर के आर्चबिशप Andrew Thazhath और CBCI ने आरोपों को “बिना आधार” बताया और केस के पूरी तरह खारिज करने की मांग की। वे ननों को “न्याय का प्रतीक” बताते हुए जुड़े अधिकारियों की आलोचना कर रहे हैं।

🏛️ राजनीतिक और संवैधानिक विवाद

  • कांग्रेस व UDF के नेता, जैसे V.D. Satheesan, ने आरोप लगाया है कि मामला धार्मिक दुर्भावना, माइनॉरिटी उत्पीड़न और सांstitutional उल्लंघन का उदाहरण है।
    उन्होंने बजरंग दल और बीजेपी नेतृत्व की निंदा की है, साथ ही कहा कि यह धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है।
  • BJP का रुख विभेदित रहा—जहां केरल शाखा ने “यह तो एक misunderstanding” कहा, वहीं छत्तीसगढ़ इकाई ने आरोपों को गंभीर जानकारी पर आधारित बताया। इस पूरे मामले में दोहरी राजनीति का आरोप भी लगा है।

🧾 सारांश

पहलुविवरण
निर्णयतीनों आरोपियों को ₹50,000 बांड + पासपोर्ट जमा + देश न छोड़ने की शर्त पर जमानत
कोर्ट की टिप्पणीFIR सिर्फ आशंका पर आधारित; मामला जांच का विषय, जमानत निर्णय न्यायिक विवेक के तहत
बचाव पक्ष की दलीलेंआरोप निराधार, conversion व trafficking का कोई दबाव नहीं था
धार्मिक नेतृत्व की प्रतिक्रियान्यायाधिकारों पर विश्वास जताया; मामले को संविधानिक सवाल बताया
राजनीतिक विवादविपक्ष ने BJP-बजरंग दल पर धार्मिक पक्षपात और संवैधानिक उल्लंघन का आरोप लगाया

इस घटना ने न केवल छत्तीसगढ़-केरल के धार्मिक संवेदनशीलता पक्षको और राजनीति तक दुखद प्रभाव डाला है, बल्कि यह legal safeguards, religious freedom और anti-conversion कानूनों जैसे संवैधानिक विषयों पर गहराई से सवाल उठाती है।

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