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Deepika Padukone ने कहा है कि बड़ी-बड़ी ₹500 करोड़-वाली फिल्में अब उन्हें उतनी प्रभावित नहीं करतीं।

उन्होंने बताया कि अब वे केवल व्यावसायिक सफलता से प्रेरित नहीं हैं, बल्कि “उद्देश्य” और “अभिनय का अर्थ” उन्हें अधिक मायने रखते हैं।
1) क्या कहा और संदर्भ (संक्षेप)
- Deepika ने कहा है कि अब ₹500-कروड़ जैसी बड़ी-बड़ी स्पेक्ट्रैकुलर फिल्में उन्हें उतनी प्रभावित नहीं करतीं — यानी सिर्फ बड़े बॉक्स-ऑफ़िस आंकड़े या भारी बजट उनके फैसलों का प्राथमिक कारण नहीं हैं।
- उन्होंने जो विचार दोहराया है: “Anything that doesn’t feel true to me doesn’t cut it” — यानी कोई प्रोजेक्ट व्यक्तिगत सत्य/कनेक्शन और मकसद न देता हो तो पैसा-शोहरत सिर्फ उतना मायने नहीं रखती।
2) क्यों कह रही हैं — पृष्ठभूमि और हालिया घटनाएँ
- हाल ही में उन्होंने दो बड़े प्रोजेक्ट्स — Sandeep Reddy Vanga की Spirit और Prabhas-स्टारर Kalki 2898 AD (सीक्वल) — से अलग होने की खबरें सुर्खियों में रहीं। इन खबरों के बाद इस स्टेटमेंट का प्रसंग बना।
- Deepika ने पिछले दिनों वर्क-लाइफ बैलेंस, 8-घंटे कार्यदिवस और बर्नआउट को समर्पण समझने की culture की भी आलोचना की है — खासकर नए माताओं के संदर्भ में। उनका फोकस अब मेंटल-हेल्थ और परिवार के साथ समय पर भी है।
3) क्या संकेत मिलते हैं — इसका मतलब इंडस्ट्री के लिए
- कलात्मक प्राथमिकता > कॉमर्शियल ग्रोथ: बड़े स्टार्स का इस तरह का रुख दिखाता है कि अब टैलेंट—विरासत/मकसद—पर भी ज़ोर बढ़ेगा; केवल बिग-बजट ही निर्णय-चिन्ह नहीं रहेंगे।
- वर्किंग कंडीशंस पर बहस तेज़ होगी: Deepika के 8-घंटे के रुख और “बर्नआउट ≠ कमिटमेंट” जैसे बयान से सेट पर काम के घंटों, शेड्यूलिंग और नए माता-पिता के लिए सपोर्ट पर बातचीत बढ़ेगी। कुछ निर्देशकों/प्रोजेक्ट्स में लंबी शिफ्ट की भी प्रतिक्रिया आ रही है (विवाद/टिप्पणी देखने को मिली)।
- प्रोडक्टिव-चयन में बदलाव: बड़े-छोटे दोनों पैमाने की फिल्मों के बीच कलाकार की प्राथमिकता अब कहानी, टीम और संदेश पर अधिक केंद्रित होगी — यानी छोटे “अर्थपूर्ण” प्रोजेक्ट्स में भी बड़े सितारों की दिलचспी बढ़ सकती है।
4) Deepika के बयान के कुछ मुख्य उद्धरण (सार में)
- “Anything that doesn’t feel true to me doesn’t cut it.”
- “We mistake burnout for commitment.” (वर्क-हाइअलाइटिंग और 8-hour workday समर्थन के संदर्भ में)।
5) क्या बदलने की संभावना है — व्यावहारिक असर
- कास्टिंग-डायनेमिक्स: कुछ बड़े प्रोजेक्ट्स में कलाकारों की उपलब्धता और समय-सीमाएँ पुनर्विचार की जा सकती हैं (ज्यादा फ्लेक्सिबिलिटी, शार्ट-रोटेशन)।
- निर्माण-प्रकिया: प्रोड्यूसर/निर्देशक संभवतः सेट पर काम के घंटे, शिफ्ट-प्लान और पैरेंट-फ्रेंडली पॉलिसीज़ पर ध्यान देंगे ताकि टॉप-टियर स्टार्स साथ बने रहें।
- कमर्शियल फिल्मों की परिभाषा बदल सकती है: बड़ी कमाई ही सफलता की परिभाषा नहीं—कहानी, सामाजिक प्रभाव, और कलाकार-समर्थन भी मान्यता पाएंगे।



