
1. कार्यक्रम का सारांश
- अवसर: सूचना का अधिकार (RTI) कानून की 20वीं वर्षगांठ (12 अक्टूबर 2005 को लागू)।
- स्थान: राजीव भवन, रायपुर (छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कार्यालय)।
- मुख्य वक्ता:
- दीपक बैज – प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष (PCC Chief)
- भूपेश बघेल – पूर्व मुख्यमंत्री, वरिष्ठ कांग्रेस नेता
- चरणदास महंत – नेता प्रतिपक्ष
- कांग्रेस के अन्य वरिष्ठ पदाधिकारी, कार्यकर्ता एवं मीडिया प्रतिनिधि
🟨 2. दीपक बैज के मुख्य बिंदु (RTI पर फोकस)
✳️ ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- RTI कानून 12 अक्टूबर 2005 को लागू हुआ — यूपीए सरकार का ऐतिहासिक कदम।
- इसके बाद यूपीए शासनकाल में लोकहित आधारित कानूनों की श्रृंखला बनी:
- 2005: मनरेगा (रोज़गार का अधिकार)
- 2006: वन अधिकार अधिनियम
- 2009: शिक्षा का अधिकार (RTE)
- 2013: भूमि अधिग्रहण एवं मुआवजा कानून

✳️ आरोप:
- “भाजपा सरकार RTI को कमजोर कर रही है।”
- पहले जो सूचनाएँ जनहित में आती थीं, उन्हें अब ‘निजी जानकारी’ बताकर रोका जा रहा है।
- कई विभागों में RTI आवेदनकर्ताओं को “सुरक्षा या गोपनीयता” के बहाने जवाब नहीं दिया जा रहा।
- कांग्रेस का कहना है कि यह “पारदर्शिता के अधिकार पर हमला” है।
✳️ प्रमुख कथन:
“डबल इंजन की सरकार जनता से सच छिपाने का प्रयास कर रही है।”
यह कथन केवल राज्य-केंद्र तालमेल पर कटाक्ष नहीं, बल्कि यह दर्शाता है कि कांग्रेस अब “सत्य और पारदर्शिता” के नैरेटिव को अपने राजनीतिक हथियार के रूप में पुनर्जीवित करना चाहती है।
🟥 3. भूपेश बघेल के आरोप (जांच एजेंसियों पर फोकस)
✳️ मुख्य विषय:
- जांच एजेंसियों (ED, CBI, ACB, EOW आदि) की निष्पक्षता पर सवाल।
- कहा कि अब “फैसला पहले से लिखा होता है, कार्रवाई बाद में होती है।”
✳️ प्रमुख आरोप:
- न्यायिक प्रक्रिया प्रभावित हो रही है
- पहले जो कलमबंद बयान न्यायाधीश की उपस्थिति में होते थे, अब उनमें छेड़छाड़ की जा रही है।
- दस्तावेज़ अदालत में जाने से पहले मीडिया या राजनीतिक पक्षों तक पहुँच रहे हैं — यह न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन है।
- कोयला घोटाला उदाहरण:
- आरोपियों के खिलाफ “सीलबंद बयान” अदालत के पहले मीडिया तक पहुँचे।
- दस्तावेज़ में “अलग-अलग फॉन्ट” — यानी कि संभवतः छेड़छाड़ या एडिटिंग।
- “दो दिनों में 25 पन्नों का बयान कैसे तैयार हुआ?” — प्रक्रिया की गति पर सवाल।
- एजेंसियों की जवाबदेही पर प्रश्न:
- “ACB और EOW को न तो कानून का भय है, न न्यायालय का।”
- यानी राज्य की जांच एजेंसियाँ राजनीतिक निर्देशों पर काम कर रही हैं।
✳️ मीडिया पर टिप्पणी:
- भूपेश बघेल ने मीडिया से सवाल किया —
“जब सीलबंद दस्तावेज़ आपके पास आया, तो किसी मीडिया हाउस ने यह क्यों नहीं पूछा कि यह दस्तावेज़ पहुँचा कैसे?”
यह वक्तव्य मीडिया की भूमिका और निष्पक्षता पर भी अप्रत्यक्ष प्रश्न है।
🟩 4. कांग्रेस की सामूहिक मांगें
- RTI कानून को फिर से सशक्त किया जाए
- नियुक्तियों और अपीलीय प्राधिकरणों की पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए।
- “सूचना आयोग” (Information Commission) में रिक्त पदों की तत्काल पूर्ति।
- RTI आवेदनों की अस्वीकृति के मामलों में जनसुनवाई का प्रावधान।
- जांच एजेंसियों की जवाबदेही तय की जाए
- राजनीतिक प्रतिशोध के लिए दुरुपयोग पर नियंत्रण।
- एजेंसियों के कार्यों की न्यायिक निगरानी।
- सीलबंद दस्तावेज़ों की प्रोटोकॉल सुरक्षा व्यवस्था।
- मीडिया और नागरिकों की सुरक्षा
- RTI कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को धमकियों से सुरक्षा प्रदान की जाए।
🟪 5. राजनीतिक संदर्भ (Context Analysis)
- समय-संयोग: यह वार्ता ऐसे समय हुई जब विपक्षी दल लगातार केंद्र सरकार पर जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप लगा रहे हैं।
- संदेश: कांग्रेस ने यह स्पष्ट करने की कोशिश की कि सूचना का अधिकार जनता की आवाज़ है, और उसकी कमजोरी लोकतंत्र की कमजोरी है।
- रणनीतिक उद्देश्य:
- 2025-26 के विधानसभा चुनावों की पृष्ठभूमि में “पारदर्शिता बनाम डर” का नैरेटिव स्थापित करना।
- आरटीआई की 20वीं वर्षगांठ को “जनसत्ता दिवस” की तरह प्रचारित करना।
🟫 6. ऐतिहासिक और सांविधानिक पृष्ठभूमि (तथ्यात्मक जानकारी)
- RTI कानून का प्रारंभिक मसौदा UPA-I सरकार ने पेश किया था।
- यह कानून नागरिकों को किसी भी सार्वजनिक प्राधिकरण से सूचना प्राप्त करने का अधिकार देता है।
- भारत का RTI अधिनियम दुनिया के सबसे मजबूत पारदर्शिता कानूनों में गिना जाता है।
- 2019 में संशोधन के बाद केंद्रीय सूचना आयुक्तों की नियुक्ति और कार्यकाल पर सरकार का नियंत्रण बढ़ गया — विपक्ष ने इसे “RTI की आत्मा पर प्रहार” कहा।
- बीते कुछ वर्षों में RTI कार्यकर्ताओं पर हमलों और हत्या के मामलों में वृद्धि भी हुई है।
🟧 7. संभावित राजनीतिक असर
- कांग्रेस ने RTI मुद्दे को “जनता बनाम सत्ता” के रूप में प्रस्तुत किया।
- भूपेश बघेल के एजेंसी दुरुपयोग वाले बयान से यह संकेत मिला कि पार्टी भविष्य में लोकतंत्र की रक्षा के नारे को चुनावी आधार बना सकती है।
- यदि कांग्रेस इस मुद्दे को लगातार उठाती है, तो यह राज्य से केंद्र तक विपक्ष की एकता का आधार बन सकता है।
🟦 8. निष्कर्ष
यह प्रेस वार्ता केवल “20 साल पूरे होने” का कार्यक्रम नहीं थी, बल्कि एक राजनीतिक घोषणा-पत्र की तरह थी —
जहाँ कांग्रेस ने तीन प्रमुख बातें स्थापित करने की कोशिश की:
- सूचना का अधिकार जनता का मूलाधिकार है,
- एजेंसियों की निष्पक्षता लोकतंत्र की रीढ़ है,
- मीडिया और नागरिकों की स्वतंत्रता पर अंकुश नहीं होना चाहिए।