छत्तीसगढ़

CM हाउस में परोसी गई पारंपरिक छत्तीसगढ़ी रसोई, मुख्यमंत्री आवास रायपुर में इस बार हरेली तिहार के दौरान मनाए गए छत्तीसगढ़ी व्यंजन…

CM हाउस में परोसी गई पारंपरिक छत्तीसगढ़ी रसोई

मुख्यमंत्री के घर को इस अवसर पर लोक संस्कृति की रौनक से सजाया गया था, जिसमें खासकर छत्तीसगढ़ी व्यंजनों की खुशबू ने समूचे समारोह को लोकधर्मिता से भर दिया:

  • ठेठरी (Thethri): मक्के या चावलों के आटे की कुरकुरी तली हुई पूरी, खासकर त्योहारों में बच्चों की पहली पसंद होती है ।
  • खुरमी (Khurmi): मीठा और क्रिस्पी स्नैक, चाय के साथ परोसा गया
  • पीडिया (Pidia): मीठी या नमकीन गुड़ी भरकर बनाई जाती है, त्योहारों में बहुत लोकप्रिय
  • अनर्सा (Anarsa) और खाजा (Khaja): गुड़ से बनी मिठाइयाँ, फेस्टिव समय की खास व्यंजन सामग्री
  • करी लड्डू (Kari Laddu): चावल या दाल के साथ बनाई गई लड्डू, स्वाद और ऊर्जा का स्रोत ।
  • मुठिया (Muthiya), चिला‑फरा (Cheela‑Fara), बरा (Bara): दाल और चावल आधारित पकवान, हल्के व पौष्टिक, बच्चों को विशेष पसंद आए ।
  • गुलगुला‑भजिया (Gul Gula Bhajiya): मीठे चावल‑आटे की पकोड़े, स्थानीय स्वाद की शक्ति होती है
  • दूध फरा (Dhoodh Faraa): चावल के रोल, जो दूध व मसालों में पकाए जाते हैं — सादगी और स्वाद का बेहतरीन मेल ।

🎉 स्वरूप और सांस्कृतिक मेल

  • पूरे मुख्यमंत्री आवास को पारंपरिक ग्रामीण रूप से सजाया गया — लोकधुनों, खेती के उपकरणों, और स्थानीय कलाओं से।
  • स्टॉल पर पकवानों की भी व्यवस्था थी, जहाँ अतिथियों ने स्वादिष्ट छत्तीसगढ़ी खाद्य पदार्थों का आनंद लिया
  • भरधाव लोकधुनों जैसे राउत नाचा, गेड़ी नृत्य के बीच ये व्यंजन लोगों को कृषि‑संस्कृति से जोड़ने में भूमिका निभाते हैं ।

🌱 सांस्कृतिक-मैसेज

CM हाउस पर विशेष आयोजन का मकसद था:

  • किसानों और ग्रामीण संस्कृति को प्रतिष्ठित करना।
  • हरेली तिहार की हरियाली, सम्मान और प्रयोग-आधारित लोकपरंपराओं को सुरक्षित रखना — जैसे गेड़ी पर चलना और कृषि यंत्रों की पूजा ।
  • प्राकृतिक कृतज्ञता और लोकजड़ों से जुड़ाव का अहसास — जो इन मिष्टान्नों के माध्यम से जीया गया

✅ सारांश

मुख्यमंत्री निवास में हरेली तिहार का आयोजन छत्तीसगढ़ी स्वादों और लोकसंस्कृति की मधुर झलक लेकर आया। ठेठरी, खुरमी, पिड़िया, अंसरा, दूध फरा, जैसी पारंपरिक मिठाइयाँ—न केवल स्वादिष्ट थीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था, कृषि और लोकधरोहर के साथ जुड़े रहने का प्रतीक थीं।

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