छत्तीसगढ़बस्तर

बस्तर अब युद्ध-क्षेत्र से विकास-केंद्र की दिशा में कदम बढ़ा रहा है

बस्तर अब युद्ध-क्षेत्र से विकास-केंद्र की दिशा में कदम बढ़ा रहा है — सुरक्षा उपायों के साथ-साथ सड़कों, ब्रिज, पर्यटन और जनकल्याण परियोजनाओं पर जोर दिया जा रहा है, पर साथ ही मानवाधिकार व पर्यावरण संबंधी चिंताएँ भी उठ रही हैं।


1) सुरक्षा और कानून-व्यवस्था

  • राज्य सरकार और सुरक्षा बलों ने लक्षित ऑपरेशन्स, पुनर्वास-नीतियाँ और सरेंडर-प्रणालियों पर काम बढ़ाया है। छत्तीसगढ़ सरकार की रिपोर्टिंग/आधिकारिक बयानों के अनुसार सैकड़ों नक्सलियों के सरेंडर व कुछ कमजोर किए गए नेटवर्क के बाद प्रशासन यह मानता है कि हालात में सकारात्मक बदलाव आया है।

क्या मायने रखता है: बेहतर सुरक्षा से प्रशासन पहुँच, स्कूल, स्वास्थ्य और बाजार जैसी सार्वजनिक सेवाएँ घाटियों तक पहुँचाने में सक्षम होता है — यही विकास की नींव है।


2) आधारभूत ढांचा और बड़े निवेश

  • केंद्र-सरकार ने नक्सल प्रभावित जिलों के लिए सड़क-कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट (RCPLWEA) के तहत छत्तीसगढ़ को हाल ही में लगभग ₹195 करोड़ आवंटित किए — इससे दूरदराज़ इलाकों में ऑल-वेदर रोड, पुल और क्रॉस-ड्रेनेज का काम होगा। यह कदम विकास को स्थायी पहुँच देने की नीति का हिस्सा है।
  • साथ ही राज्य स्तर पर बड़े प्रोजेक्टों की योजना (जल संसाधन/डैम आदि) और औद्योगिक निवेश को बढ़ाने की तैयारी चल रही है — जिससे रोजगार और स्थानीय आपूर्ति-श्रृंखला विकसित होने की उम्मीद है। (सरकारी घोषणाएँ और बजट दस्तावेज़ों में इन पहलों का जिक्र है।)

3) ब्रिज/रोड व लोक सेवा-पहुँच की तैयारी

  • BRO और राज्य एजेंसियों ने बस्तर में कई पुल और सड़क परियोजनाएँ शुरू की हैं; कुछ पुल पूरे हो चुके हैं और बाकी अगले समय में पूरे किए जाने का लक्ष्य बताया गया है — इससे नक्सल प्रभावित इलाकों का बाहरी दुनिया से जुड़ाव तेज होगा।

4) संस्कृति, पर्यटन और अर्थव्यवस्था का पुनर्जीवन

  • बस्तर-दुर्गा/बस्तर-दशहरा जैसी अनूठी परंपराएँ और छत्तीसगढ़ सरकार-लोक प्रयासों के कारण पर्यटन की खपत बढ़ रही है; स्थानीय हस्तशिल्प, पर्व और नेचर-टूरिज्म (Chitrakote, Tirathgarh आदि) से रोजगार के नए रास्ते खुल रहे हैं। पत्रकार और क्षेत्रीय रिपोर्टों ने “बस्तर मेकओवर” का जिक्र किया है।

5) केंद्रीय/राज्य मान्यता और पब्लिक-डायलग

  • राष्ट्रीय स्तर पर भी बस्तर में बदलाव को नोट किया गया है — प्रधानमंत्री कार्यालय ने राज्य के वरिष्ठ नेतृत्व द्वारा लिखे गए लेखों/रिपोर्टों को साझा किया, जिससे यह विषय केंद्र सरकार के विमर्श में भी आया।

6) शिक्षा-स्वास्थ्य-समाज: लोककल्याण पहलें

  • राज्य में शिक्षा और हेल्थकेयर पहुँचाने के लिए लाइब्रेरी/नालंदा-कम्प्लेक्स जैसे पहलें और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की गुणवत्ता-प्रमाणन जैसी व्यवस्थाएँ भी चल रही हैं — ये लंबे समय में मानवीय पूँजी गढ़ने में मदद करेंगी।

7) पर्यावरण और परंपरा के बीच संतुलन

  • संस्कृति-सम्बन्धी रीति-रिवाजों (उदा. बस्तर-दुशेरा के लिए बड़े लकड़ी के रथ) के कारण हर साल पेड़ों के कटने की परंपरागत चुनौतियाँ होती रहीं; स्थानीय प्रशासन और समुदाय अब पेड़ लगाने व पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के उपायों पर भी ध्यान दे रहे हैं, पर पर्यावरणविद् जागरूकता और स्थानीय-प्रजाति पुनरोपण पर ज़ोर दे रहे हैं।

8) आलोचना और जोखिम (जो अभी भी बने हुए हैं)

  • कुछ मानवाधिकार समूहों और विदेशी मीडिया ने सुरक्षा-ऑपरेशनों के दौरान नागरिकों पर कथित क़दमों (जैसे ‘फेक-एन्काउन्टर’ के आरोप) का हवाला दिया है; इन मुद्दों का समुचित, पारदर्शी और कानूनी तरीके से निपटना विकास की नैतिक ज़िम्मेदारी है। यह याद रखना जरूरी है कि शांति-प्रक्रिया में पारदर्शिता और स्थानीय समुदायों की भागीदारी बहुत मायने रखती है।

निचोड़ (takeaway)

  1. सुरक्षा-कदमों + इन्फ्रा-निवेश = विकास-दर — बेहतर सड़कों, पुल और सेवाएँ आने वाले वर्षों में अर्थव्यवस्था खोल सकती हैं।
  2. संस्कृति और पर्यटन स्थानीय आजीविका के बड़े स्रोत बन रहे हैं, पर पर्यावरण और परंपरा के बीच संतुलन ज़रूरी है।
  3. चुनौतियाँ भी बाकी — मानवाधिकार, उचित पुनर्वास, जमीन-विवाद और पारदर्शिता पर निरंतर नजर जरूरी है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button