छत्तीसगढ़

धान खरीदी टोकन नहीं कटने से परेशान किसान ने किया जहर सेवन, हालत अब सामान्य…

खरसिया विकासखंड के ग्राम बकेली से एक बेहद चिंताजनक मामला सामने आया है, जहां धान खरीदी टोकन न कट पाने से परेशान एक किसान ने जहर सेवन कर आत्महत्या का प्रयास किया। फिलहाल किसान का इलाज मेडिकल कॉलेज अस्पताल में जारी है और उसकी हालत अब सामान्य बताई जा रही है।

15 दिनों से टोकन के लिए भटक रहा था किसान

प्राप्त जानकारी के अनुसार ग्राम बकेली निवासी कृष्णा कुमार गबेल पिछले करीब 15 दिनों से धान खरीदी के लिए टोकन कटवाने के प्रयास में लगातार भटक रहा था। उसने ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों से कई बार कोशिश की, लेकिन तकनीकी और प्रक्रिया संबंधी समस्याओं के कारण उसका टोकन नहीं कट सका।

बहनों के नाम जमीन, यहीं अटका मामला

कृष्णा कुमार गबेल की दो बड़ी बहनें हैं, जिनके नाम पर लगभग एक एकड़ कृषि भूमि दर्ज है। वह कई वर्षों से उसी जमीन पर खेती-किसानी कर रहा है।
चूंकि जमीन का आधिकारिक पंजीयन बहनों के नाम पर है, इसलिए धान खरीदी से जुड़ी प्रक्रियाओं में आधार, मोबाइल नंबर और ओटीपी की आवश्यकता होती है।
इसी कारण उसने अपनी बड़ी बहन के बेटे का मोबाइल नंबर दर्ज कराया था, जिस पर टोकन कटने के लिए ओटीपी आना था, लेकिन यह प्रक्रिया सफल नहीं हो पाई।

मानसिक तनाव में उठाया खौफनाक कदम

लगातार प्रयासों के बावजूद टोकन नहीं कटने से कृष्णा कुमार गबेल मानसिक रूप से बेहद परेशान हो गया था।
शनिवार सुबह करीब 11 बजे, जब वह अपने परिवार के साथ घर पर था, तभी मानसिक तनाव से घिरकर उसने कीटनाशक का सेवन कर लिया।

परिजनों ने बचाई जान

जैसे ही घटना की जानकारी उसकी पत्नी और परिवार के अन्य सदस्यों को हुई, उन्होंने तत्काल उसे सिविल अस्पताल खरसिया पहुंचाया।
वहां हालत गंभीर होने पर चिकित्सकों ने प्राथमिक उपचार के बाद उसे देर रात मेडिकल कॉलेज अस्पताल रेफर कर दिया।

फिलहाल हालत स्थिर

अस्पताल सूत्रों के अनुसार, समय पर इलाज मिलने से किसान की हालत अब सामान्य बताई जा रही है और उसका इलाज जारी है।

सिस्टम पर उठे सवाल

इस घटना ने एक बार फिर धान खरीदी व्यवस्था, टोकन प्रणाली और तकनीकी प्रक्रियाओं पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
ग्रामीण क्षेत्र में जमीन के नामांतरण, मोबाइल ओटीपी और ऑनलाइन सिस्टम की जटिलता के कारण किसान किस तरह मानसिक दबाव में आ रहे हैं, यह मामला उसका जीता-जागता उदाहरण है।

प्रशासन से अब यह अपेक्षा की जा रही है कि ऐसे मामलों में मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए प्रक्रियाओं को सरल बनाया जाए, ताकि कोई किसान मजबूरी में इस तरह का कदम न उठाए।

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