छत्तीसगढ़
हिडमा की मौत पर बस्तर में विवाद भड़का: फर्जी मुठभेड़, अंदरूनी साज़िश और स्वतंत्र जांच की मांग तेज..

- आधिकारिक मीडिया-रिपोर्ट के मुताबिक माड़वीं (Madvi) हिडमा और कुछ साथियों की मौत 18 नवंबर को छत्तीसगढ़-आंध्र प्रदेश सीमा के पास मारेडुमिल्ली/मारे-दमिल्ली जंगलों में हुई एक “मुठभेड़” में हुई — राज्य/पुलिस इसे सुरक्षा-कार्रवाई/एन्काउन्टर बता रही है।
किन-किन ने क्या दावा किया (विरोधाभासी बयानों का सार)
- सुरक्षा/प्रशासनिक बयान: सुरक्षा बलों और कई मीडिया रिपोर्टों में घटना को “एक्शन/एक्सचेंज ऑफ फायर” के रूप में बताया गया है और इसे नक्सल आंदोलन के लिए एक बड़ा झटका बताया जा रहा है।
- बस्तर राज मोर्चा / मनीष कुंजाम का दावा: बस्तर के कुछ राजनीतिक/सामाजिक नेताओं और बस्तर मोर्चा के प्रतिनिधियों ने कहा है कि यह मुठभेड़ नहीं, बल्कि संगठन के अंदर सत्ता-संघर्ष/षड्यंत्र के चलते की गई हत्या है — उनकी रेखा: हिडमा आत्मसमर्पण/मुख्यधारा में लौटने की तैयारी में थे और इसलिए शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें हटाया। इस तरह के आरोपों की रिपोर्टिंग की गयी है।
- नक्सली/केंद्रीय कमेटी का बयान (अभय/भूपति-समूह): नक्सल प्रवक्ता (अभय/भूपति जैसे नाम) ने भी पर्चा/प्रेस नोट जारी कर कहा कि हिडमा को विजयवाड़ा में गिरफ्तार/कफ्र में रखा गया था और बाद में उन्हें और साथियों को मार कर घटना को मुठभेड़ बताया गया; संगठन ने 23 नवम्बर को देशव्यापी “प्रतिरोध-दिवस” मनाने की घोषणा भी की।
- सिविल-संगठनों / एक्टिविस्ट-आवाज़: कुछ सामाजिक कार्यकर्ता और सक्रिय नागरिक (जैसे सोनि सोरी आदि) ने भी ‘एनकाउंटर फेक’ होने के संदेह का इशारा किया है और स्वतंत्र जांच की मांग उठा रहे हैं।

सार: दो स्पष्ट धाराएँ हैं — (A) प्रशासन/पुलिस का एन्काउन्टर वाला वर्जन और (B) नक्सली/कुछ स्थानीय नेताओं-एक्टिविस्ट का “गिरफ़्तार करके मराया गया / अंदरूनी षड्यंत्र” वाला वर्जन। फिलहाल दोनों तरफ़ के दावे खुले रूप में सामने हैं।
कौन-सा सबूत निर्णायक होगा (अगर स्वतंत्र जांच हो)
अगर किसी बेहतरीन, पारदर्शी जांच की जाए तो ये चीज़ें मायने रखेंगी:
- कस्टडी/लॉजिस्टिक्स रिकॉर्ड — क्या किसी संस्थान-ने हिडमा/किसी साथी को अस्पताल/कस्टडी में लिया था? किस तारीख-समय पर? (यदि नक्सल दावा है कि वे विजयवाड़ा गए थे, तो अस्पताल-रजिस्टर/अस्पताल के रिकॉर्ड निर्णायक होंगे).
- पुलिस/एसआईबी की आंतरिक रजिस्ट्रियाँ और ऑपरेशनल रूट-मैप — कौन-किसने कब जानकारी दी, किसने टीम भेजी, और क्या रेड/गिरफ़्तारी की आधिकारिक रसीदें हैं।
- पोस्ट-मॉर्टेम और बुलेट/बैलिस्टिक रिपोर्ट — घात/घावों की दिशा, दूरी, गोला-बारूद का मिलान — यह बताता है कि किस तरह की गोलीबारी हुई।
- फॉरेंसिक (डिएनए, फिंगरप्रिंट) और शव-हैंडलिंग का चेन-ऑफ-कस्टडी — शव कहां से लाये गये, कब और कैसे दिखाये गये।
- तृतीय-पक्ष गवाह / स्थानीय लोगों के बयाने — उन ग्रामीणों/दर्जेड गवाहों का स्वतंत्र बयान जो घटना के तुरंत बाद इलाके में थे।
- किसी निगरानी/ड्रोन/सीसीटीवी/रिपोर्टेड फोन-ट्रेसेस का डेटा — जहां उपलब्ध हो।
इनमें से कम-से-कम पोस्ट-मॉर्टेम रिपोर्ट, ऑपरेशनल लॉग और अस्पताल/कस्टडी रिकॉर्ड सार्वजनिक कर देना पारदर्शिता के लिए अहम होगा। (सामान्य रूप से शासन-स्तर पर ये पहलू स्वतंत्र जांच की रिपोर्ट में आते हैं।)
क्या पूछा/माँगा जा रहा है (न्यायिक/सामाजिक मांगें)
- प्रभावित परिवारों/सामाजिक-नेताओं ने स्वतंत्र जांच (राज्य-स्तरीय CID, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, या न्यायालयीय आयोग/एससी-नियुक्त जांच) की मांग उठाई है। मीडिया और नागरिक-समूह भी इसी की माँग कर रहे हैं।
इससे अब क्या-क्या सम्भाव्य नतीजे हो सकते हैं (नज़दीकी)
- तत्काल-प्रभाव: 23 नवम्बर के “प्रतिरोध-दिवस” की कॉल के मद्देनज़र सुरक्षा बल संवेदनशील इलाकों में अलर्ट पर हैं; स्थानीय बंद/प्रदर्शन/छिटपुट हिंसा की आशंका रहती है — प्रशासन सतर्क है।
- राजनीतिक/कानूनी असर: यदि परिवार/समाजिक नेता न्यायालय जाते हैं तो उच्चतम न्यायालय/राज्य सरकार जांच आदेश दे सकती है; दूसरी ओर सुरक्षा एजेंसियाँ भी अपना ऑपरेशनल रिकॉर्ड सार्वजनिक कर सकती हैं ताकि मुठभेड़-वर्ज़न को प्रमाणित कर सकें।
- लंबी अवधि: हिंदमा जैसे शीर्ष कमांडर की मौत से नक्सली संगठन के भीतर असंतुलन, सुरक्षाबलों के लिए रणनीतिक लाभ और स्थानीय स्तर पर सशंकित सामुदायिक प्रतिक्रियाएँ — तीनों संभावित हैं। मीडिया में भी इसे ‘नक्सल नेतृत्व के टूटने/विभाजन’ के परिप्रेक्ष्य में पेश किया जा रहा है।
निष्कर्ष — क्या अभी साफ है?
- स्पष्ट बात: हिडमा और कई साथियों की मौत हुई — यह व्यापक रूप से रिपोर्ट है और प्रशासनिक एजेंसियाँ इसे मुठभेड़ बताती हैं।
- अनिश्चित/विवादित: घटना का पूरा क्रम — क्या वह पकड़े गए और बाद में मारे गए थे, या ऑपरेशन में फायरिंग में मरे — यह अभी विवादित है; नक्सली-कम्पनियों, स्थानीय नेताओं और कुछ एक्टिविस्टों ने ‘फर्जी एनकाउंटर/साजिश’ का आरोप लगाया है। दोनों तरफ दावे हैं और अभी तक स्वतंत्र, सार्वजनिक रूप से उपलब्ध फॉरेंसिक-प्रमाण जो इन दावों को अंतिम रूप से ठुकरा दें, सार्वजनिक नहीं हुए हैं



