छत्तीसगढ़
नक्सली हमले में शहीद MP के जांबाज़ इंस्पेक्टर आशीष शर्मा: इनपुट मिलते ही गरजकर घुसे जंगलों में, गोलियों से छलनी होने के बाद भी नहीं मानी हार…

- 18–19 नवम्बर के बीच डोंगरगढ़-बालाघाट के सीमावर्ती घने जंगलों में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र की संयुक्त सिक्योरिटी टीम की सर्चिंग/ऑपरेशन चल रही थी। इसी ऑपरेशन के दौरान सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुई और इसमें मध्यप्रदेश हॉकफोर्स के इंस्पेक्टर आशीष शर्मा गंभीर रूप से घायल हुए जिनकी बाद में अस्पताल में मृत्यु हो गई।
इंस्पेक्टर आशीष शर्मा — प्रोफ़ाइल और कामयाबियाँ
- आशीष शर्मा हॉक-फोर्स के प्रतिष्ठित अफसर माने जाते थे और खबरों में उन्हें दो बार गैलेंट्री/वीरता पदक मिलने का जिक्र है; वे कई खतरनाक नक्सल ऑपरेशनों में सक्रिय रहे और उनके ऊपर नक्सल संगठन की नज़र होने का उल्लेख भी समाचारों में आता है।
- खबरों के अनुसार वे छोटے-गाँव के रहने वाले थे, पुलिस अधिकारी के रूप में कॉन्स्टेबल से ऊपर आए और बहादुरी के कई ऑपरेशनों में आगे रहे; व्यक्तिगत खबरों में यह भी आया कि उनकी शादी जनवरी 2026 में तय थी।

किन परिस्थितियों में मुठभेड़ हुई — क्या घटनाएँ एक दूसरे से जुड़ी हैं?
- समयरेखा महत्वपूर्ण है: देश की कई रिपोर्टों के अनुसार माडवी (Madvi) हिडमा नामक हाई-प्रोफ़ाइल नक्सली कमाण्डर कुछ दिन पहले मारा गया था — इस खबर के तुरंत बाद ही सीमावर्ती इलाकों में सुरक्षा-बलों और नक्सलियों की सक्रियता/मुठभेड़ों की संख्या बढ़ती दिखी।
- सुरक्षा-विश्लेषण और स्थानीय पैटर्न जो रिपोर्ट किए जा रहे हैं, वे यह बताते हैं कि जब किसी बड़े नक्सली नेता की मौत होती है तो संगठन की कई इकाइयाँ प्रतिशोध, शक्ति प्रदर्शन या फिर सामूहिक रिइन्ट्री/रिग्रुपिंग के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों में अचानक हमले कर सकती हैं — यही बात कुछ रिपोर्ट्स में इस मुठभेड़-श्रृंखला के संदर्भ में भी कही जा रही है। पर यह अधिकृत/अंतिम निष्कर्ष नहीं है — अभी उपलब्ध रिपोर्टें समय-क्रम और रणनीतिक अनुमान पर आधारित टिप्पणियाँ देती हैं, न कि किसी आधिकारिक प्रतिशोध के स्पष्ट आदेश या शपथ-बद्ध सबूत पर।

मुठभेड़ के तरकीब-बिंदु (रिपोर्ट्स के आधार पर)
- रिपोर्टों में बताया गया है कि जब अचानक अंधाधुंध गोलीबारी शुरू हुई, तब आशीष शर्मा ने अग्रिम पंक्ति में रहकर टीम का मनोबल बनाए रखा और जवाबी फायरिंग का नेतृत्व किया — उनके नेतृत्व के कारण नक्सलियों को पीछे हटना पड़ा और कई सामग्री/कैंप छूट गए। बाद में वे गंभीर रूप से जख्मी हुए; सहकर्मियों ने उन्हें जंगल से बाहर लाकर अस्पताल तक पहुंचाया, लेकिन बचाया नहीं जा सका।
क्या इसे ‘प्रतिशोध’ कहा जा सकता है?
- संभावना: राजनीतिक/सैनिक विश्लेषक और मीडिया दोनों यह संकेत दे रहे हैं कि हिडमा की हत्या के तुरन्त बाद हुई सक्रियता और इसी क्षेत्र में अचानक हमले — दोनों मिलकर प्रतिशोधी कार्रवाई की संभावना दर्शाते हैं। पर समाचार-रिपोर्ट्स में सरकारी/आधिकारिक स्तर पर इसे अभी तक स्पष्ट रूप से “प्रतिशोध” कहकर लिया जा रहा है — यानी, कड़ाई से बोलें तो यह संभावनात्मक व्याख्या है, निश्चित दावा नहीं। (अधिकारियों की आधिकारिक पुष्टि/इनवेस्टिगेशन परिणाम का इंतज़ार जरूरी रहेगा।)
असर और आगे क्या होगा
- शहीद के कारण इलाके में सुरक्षा-बलों की सेंसिटिविटी और सर्च-ऑपरेशन्स तेज होंगे; एक तरफ नक्सलियों के दबाव को तोड़ने के लिए छापे/तलाशी बढ़ेंगी, दूसरी तरफ स्थानीय-स्तर पर सतर्कता व सामुदायिक सुरक्षा बढ़ेगी। सरकार/पुलिस की ओर से शहीद के परिवार को मुआवज़ा/सहायता और प्रशासनिक घोषणाएँ जैसी पारंपरिक प्रतिक्रियाएँ आयीं हैं।
संक्षेप में — क्या कहना सही होगा?
- आशीष शर्मा की शहादत सच्ची खबर है और वे हॉक-फोर्स के बहादुर अधिकारियों में गिने जाते थे।
- माडवी हिडमा की हालिया मौत और उसके तुरंत बाद सीमावर्ती इलाकों में हुई हिंसा के बीच समयिक संबंध स्पष्ट है; मीडिया एवं विश्लेषक इसे संभावित प्रतिशोध से जोड़कर देख रहे हैं, पर अधिकारिक तौर पर अभी प्रतिशोध की पुष्टि नहीं हुई — इनवेस्टिगेशन व सुरक्षाबलों की की जा रही कार्रवाइयों का इंतज़ार होना चाहिए।



