कलेक्टर की बड़ी कार्रवाई—धान खरीदी रोकने वाली समितियों की 250 दुकानें सील, 12 पर केस…

रायपुर कलेक्टर डॉ. गौरव कुमार सिंह ने शिकायतें मिलने के बाद उन सहकारी समितियों के खिलाफ कड़ा कदम उठाया जिन पर आरोप थे कि वे समर्थन मूल्य पर धान खरीदी में बाधा डाल रही थीं — इन समितियों द्वारा संचालित 250 राशन दुकानों का आवंटन निरस्त कर दिया गया और उन दुकानों का संचालन अब ग्राम पंचायतों को सौंप दिया गया। इसके साथ ही हड़ताल पर रहे कुछ कर्मचारियों पर एस्मा (छत्तीसगढ़ अत्यावश्यक सेवा संधारण व विच्छिन्नता निवारण अधिनियम, 1979) लागू कर के काम पर लौटने के निर्देश दिए गए और लगभग 12 कंप्यूटर ऑपरेटर/कर्मचारियों के खिलाफ FIR भी दर्ज हुई।
घटना का क्रम और प्रशासन की कार्रवाई
- शिकायतें मिलीं — प्रशासन को लगातार शिकायतें मिलीं कि कुछ सहकारी समितियाँ धान खरीदी केंद्रों पर किसानों को मंडियाँ जाकर धान बेचने से रोक रही हैं, मंडियों में पहुंचने वाले किसानों को वापस भेजा जा रहा है और बिना वजह व्यवधान बनाया जा रहा है।
- कलेक्टर का आदेश — इन शिकायतों को आधार मानते हुए रायपुर कलेक्टर (डॉ. गौरव कुमार सिंह) ने उन सहकारी समितियों के अधिकार रद्द कर दिए जिनका आरोप था कि वे धान खरीदी में व्यवधान कर रही थीं — मील का फैसला: 250 राशन दुकानों का आवंटन निरस्त और संचालन ग्राम पंचायतों को दे दिया गया.
- एस्मा लागू और FIR — हड़ताल पर चल रहे कर्मचारियों को काम पर लौटने के निर्देश दिए गए; न लौटने वाले कर्मचारियों पर ESMA के तहत कार्रवाई हुई और लगभग दर्जनभर (12) कर्मचारियों के खिलाफ थानों में FIR दर्ज कराई गई। जिन थानों में केस दर्ज हुए उनमें पुरानी बस्ती, खरोरा, धरसींवा और तिल्दा-नेवरा शामिल हैं; कुछ नाम भी रिपोर्ट में दिए गए हैं।

किन इलाकों/लोगों पर FIR दर्ज हुई (रिपोर्टेड नाम — स्रोतों के अनुसार)
रिपोर्टों में कुछ नाम और थाने बताए गए हैं — उदाहरण के तौर पर पुरानी बस्ती, धरसींवा, तिल्दा और खरोरा थानों में दर्ज मामलों में जिन नामों का जिक्र है: राजू दास, ओमप्रकाश माहले, विजय गुप्ता, सुवेश, आनंद, बृज मोहन देवांगन, रामकुमार वर्मा, पोषण लाल धुरंधर, कौशल वर्मा आदि। (ध्यान दें: स्थानीय समाचार बुलेटिनों में नामों की सूची और थाने अलग-अलग संस्करणों में थोड़ी भिन्नता दिख सकती है।)
प्रशासन ने क्यों यह कदम उठाया — तात्त्विक कारण
- धान खरीदी समय-स्मृति (procurement season) में बाधा का मतलब किसानों को उनकी प्रति-क्विंटल कीमत (MSP) न मिलने का जोखिम; इसलिए प्रशासन ने फसल खरीद सुनिश्चित करने के लिए कड़े कदम चुने।
- हड़ताल/बंद ने खरीदी-केंद्रों पर गहमागहमी रोकी—जब समर्थन मूल्य पर खरीदी का सीजन शुरू होता है तो कलेक्टर स्तर पर यह संवेदनशील माना जाता है। इसलिए तत्काल प्रभावी कार्रवाई की गई।
क्या बदलेगा — सीधे प्रभाव / नतीजे
- 250 राशन दुकानों का संचालन अब ग्राम पंचायतों के पास — इसका अर्थ यह है कि जिन गांवों/क्षेत्रों में ये दुकाने थीं वहां पर अब पंचायतें स्थानीय स्तर पर दुकानों का संचालन/निगरानी करेंगी; इससे दुकानों की कार्यप्रणाली में तेजी और किसानों के लिए खरीदी का सुचारू होना अपेक्षित है।
- हड़ताली कर्मचारियों पर रोष और दबाव — FIR और ESMA के खतरे से कई जगह हड़ताले टूटने या कर्मचारियों के काम पर लौटने की सूचनाएँ भी आ रही हैं; सरकार ने स्पष्ट संदेश दिया है कि खरीदी का काम बाधित नहीं होने दिया जाएगा।
- समिति-प्रबंधकों पर राजनीतिक/आर्थिक दबाव — जिन प्रबंधकों/समितियों ने हड़ताल या अवरोध किया, उन्हें स्थानीय स्तर पर स्थापित होने वाले वैकल्पिक प्रशासन (पंचायत) से चुनौती का सामना करना पड़ सकता है; कुछ समितियाँ इस निर्णय को हड़ताल तोड़ने का आरोप कह रही हैं।
किसान/स्थानीय लोग क्या उम्मीद कर सकते हैं
- धान खरीदी की उपलब्धता बढ़ सकती है क्योंकि प्रशासन और पंचायतें खरीदी सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही हैं।
- शिकायत करने का माध्यम: यदि किसी किसान को फिर भी बाधा मिलती है तो जिला प्रशासन/कलेक्टरेट और स्थानीय थाना के माध्यम से शिकायत दर्ज करवा सकते हैं — प्रशासन ने कड़े रुख की बात सार्वजनिक की है।
सम्भावित कानूनी और प्रशासनिक असर
- ESMA लागू होने पर हड़ताल करने वालों के खिलाफ संबंधित धाराएँ लग सकती हैं; यह क़ानूनी प्रक्रिया और जांच का विषय बनेगा। FIR दर्ज होने से मामले थाने/कोर्ट तक जा सकते हैं और अनुशासनात्मक कार्रवाई (जब्ती/सस्पेंशन/बरखास्तगी) भी संभव है अगर जांच में दोष सिद्ध होते हैं।
क्या यह अकेली घटना है या बड़े पैमाने पर बदलाव का संकेत?
मौजूदा रिपोर्ट्स में संकेत हैं कि यह कदम धान खरीदी सुनिश्चित करने की दिशा में राज्यस्तर पर उठाए जा रहे सख्त कदमों का हिस्सा है — कई जिलों में हड़ताली कर्मचारियों पर दबाव और कार्रवाइयाँ रिपोर्ट हुई हैं, और कुछ जगह धान खरीदी केंद्रों पर फिर से काम शुरू होने की ख़बरें भी आई हैं। इसलिए इसे एक-दो स्थानीय मामलों के संयोजन से बड़ा प्रशासनिक फैसला माना जा रहा है।



