बिज़नेस (Business)व्यापार
Bajaj Finance Ltd के शेयर लगभग 8% तक गिरे क्योंकि Q2 के नतीजे अच्छे आने के बाद भी कंपनी ने विकास के अनुमान को कम किया और ऋण संबंधी जोखिम का हवाला दिया।

- वित्तीय क्षेत्र में कमजोरी बाज़ार में चिंता बढ़ा रही है।
- निवेशकों वास्ते यह संकेत है कि सिर्फ अच्छे नतीजे ही पर्याप्त नहीं हैं — आगे का मार्ग भी अहम है।
Bajaj Finance में 8% की भारी गिरावट — वजहें विस्तार से
तारीख: 11 नवम्बर 2025
स्रोत: India Today, Economic Times, Reuters
1. कंपनी का तिमाही प्रदर्शन
- Bajaj Finance ने सितंबर तिमाही (Q2 FY26) के नतीजे जारी किए थे —
- नेट प्रॉफिट लगभग ₹3,970 करोड़ रहा (वर्ष-दर-वर्ष ~21% वृद्धि)।
- नेट इंटरेस्ट इनकम (NII) भी 26% बढ़ी।
- एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) 36% तक बढ़े।
➡️ यानी परिणाम संख्यात्मक रूप से मजबूत थे, लेकिन…
2. गाइडेंस (Guidance) में बदलाव
कंपनी ने आगे के लिए विकास दर (growth outlook) को थोड़ा कम किया है।
- पहले अनुमान था कि AUM लगभग 32–34% की गति से बढ़ेगा,
लेकिन अब कंपनी ने इसे 28–30% पर सीमित किया है। - कारण बताया गया:
- क्रेडिट जोखिम (loan defaults का खतरा)
- वित्तपोषण लागत में वृद्धि
- RBI द्वारा सख्त नियम (consumer lending पर ध्यान)
➡️ यह निवेशकों के लिए चेतावनी संकेत की तरह है, क्योंकि भविष्य की वृद्धि पर ब्रेक लगता दिख रहा है।
3. NBFC सेक्टर पर असर
- Bajaj Finance NBFC (Non-Banking Financial Company) क्षेत्र की प्रमुख कंपनी है।
- इस क्षेत्र में हाल ही में RBI के कड़े दिशानिर्देश,
जैसे – unsecured loans पर लिमिट, capital provisioning में बदलाव —
कंपनियों के जोखिम-प्रबंधन पर असर डाल रहे हैं।

➡️ नतीजतन, HDFC Ltd, L&T Finance, Mahindra Finance जैसी कंपनियों के शेयरों में भी हल्की गिरावट दर्ज हुई।
4. ब्रोकरेज हाउस की राय
- Jefferies, CLSA जैसी फर्मों ने स्टॉक पर “Hold” या “Reduce” की सलाह दी है।
- उनका कहना है कि कंपनी के बिजनेस मॉडल पर भरोसा तो है,
लेकिन valuation पहले से ही काफी महंगा था — correction स्वाभाविक है।
5. मार्केट इंपैक्ट
- Sensex लगभग 300 अंकों की बढ़त के बावजूद Bajaj Finance ने
इंडेक्स को नीचे खींचा। - दिनभर में शेयर ₹8,300 से गिरकर ₹7,600 के आसपास बंद हुआ।
- मार्केट कैप में एक ही दिन में लगभग ₹25,000 करोड़ की कमी आई।
📊 सारांश
| कारण | प्रभाव |
|---|---|
| गाइडेंस में कटौती | निवेशक विश्वास में कमी |
| क्रेडिट जोखिम का डर | NBFC सेक्टर पर दबाव |
| उच्च वैल्यूएशन | प्रॉफिट-बुकिंग |
| RBI की नीतियाँ | लोन ग्रोथ पर असर |



