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The Taj Story को लेकर विवाद खड़ा हुआ है — इस फिल्म पर एक PIL दायर की गई है …

जिसमें दावा है कि फिल्म में “निर्मित तथ्यों” का उपयोग किया गया है और इसे साम्प्रदायिक मतभेद बढ़ाने वाला बताया गया है।

  • अभिनेता Paresh Rawal ने कहा है कि फिल्म का उद्देश्य कोई हिंदू-मुस्लिम विवाद नहीं खड़ा करना था।

“The Taj Story” विवाद का विस्तारित, सटीक और ताज़ा सार दे रहा हूँ — क्या हुआ, कौन-किसने क्या दायर/कहा, कानूनी हाल-ए-जहाँ, और सार्वजनिक प्रभाव क्या हो सकता है। मैंने प्रमुख खबरों के स्रोत भी हर महत्वपूर्ण बिंदु के बाद दे दिए हैं ताकि आप आगे पढ़ सकें।


1) विवाद का संक्षिप्त सार (What’s the row?)

  • एक PIL (Public Interest Litigation) दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल हुई है जिसमें दावा किया गया है कि फिल्म “The Taj Story” में “निर्मित (fabricated) तथ्यों” का उपयोग हुआ है और फिल्म में ऐसी सामग्री है जो साम्प्रदायिक मतभेद/दंगल को भड़काने की क्षमता रखती है।
  • शिकायत में खासतौर पर फिल्म-ट्रेलर का एक दृश्य (या मोशन-पोस्टर) उद्धृत किया गया है — जिसमें ताजमहल के गुंबद के ऊपर से कोई आकृति (कहा जा रहा है — शिव/मूर्ति) दिखती है, और यह संकेत मिलता है कि ‘ताज मूलतः किसी मन्दिर/हिंदू संरचना पर बनता था’—यही बात चिंताएँ पैदा कर रही हैं।

2) कानूनी स्थिति (दिल्ली हाईकोर्ट)

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने तुरंत सुनवाई (urgent hearing) का अनुरोध खारिज कर दिया/मान्यता नहीं दी — यानी कोर्ट ने तत्काल (रिलीज़ से पहले) फिल्म रोकने की मांग को तात्कालिक प्राथमिकता नहीं दी, पर याचिका बाद में तय प्रक्रिया के अनुसार सुनी जाएगी।
  • PIL में केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC), फिल्म निर्माताओं, निर्देशक और प्रमुख अभिनेताओं को भी पक्ष बनाया गया है; याचिका का तर्क है कि CBFC ने जो प्रमाणपत्र दिया, उसे पुनर्विचार होना चाहिए

3) कलाकार/निर्माताओं की प्रतिक्रिया — Paresh Rawal का मत

  • मुख्य अभिनेता परेश रावल ने खुलकर कहा है कि फिल्म का उद्देश्य किसी भी हिंदू-मुस्लिम विवाद को भड़काना नहीं है। उन्होंने कहा कि फिल्म साझी/विभाजित इतिहास पर नहीं, बल्कि किसी कथानक-आधारित कहानी/न्यायालयीन ड्रामा पर है और “हमने कभी साम्प्रदायिकता फैलाने का इरादा नहीं रखा।”
  • मीडिया में उनका तर्क यह भी आया है कि फिल्म को पहले से CBFC प्रमाणित किया जा चुका है—और इतना बड़ा निवेश कोई निर्माता सिर्फ दंगा-फैलाने के उद्देश्य से नहीं करेगा।

4) क्या कहना है याचिकाकर्ता का (दावों का विस्तार)

  • याचिकाकर्ता (वकील Shakeel Abbas सहित खबरों में नाम) का कहना है: फिल्म ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करती है, इससे सार्वजनिक शांति व कानून-व्यवस्था प्रभावित हो सकती है, और ताज-महल जैसी विश्व-विख्यात धरोहर की छवि को नुकसान पहुँचेगा। वे CBFC के प्रमाणन की समीक्षा और/या रिलीज़ पर रोक की मांग कर रहे हैं।

5) सार्वजनिक-राजनीतिक प्रतिक्रिया और मीडिया

  • सोशल मीडिया पर विवाद दोनों तरफ उभरा — कुछ लोग कहते हैं कि यह ऐतिहासिक शोध का मुद्दा है और खुली बहस हो सकती है; कईयों ने फिल्म पर तीखी प्रतिक्रिया दी और इसे प्रो-विजन/राजनीतिक एजेण्डा कह दिया। खबरों में यह भी दिखा कि यह मामले ने राजनीतिक और सांस्कृतिक बहस को हवा दे दी है।

6) संभावित परिणाम (क्या हो सकता है)

  1. कोर्ट में सुनवाई → CBFC प्रमाणपत्र की समीक्षा: कोर्ट अगर माने तो CBFC के फैसले की जांच/रिव्यू कर सकता है; अदालत सिनेमा-प्रदर्शन पर निर्देश दे सकती है (कट/कंडीशनल रिलीज/स्थगन)।
  2. रिलीज़ पर स्टेट-लेवल रोक/अनुमति: कुछ राज्यों ने इतिहास में ऐसी फिल्मों पर प्री-कौशन लिया है; स्थानीय शासन/प्रशासन सुरक्षा कारणों से निर्देश दे सकते हैं। (यह केस-परस्थितिभर है।)
  3. Public debate और PR response: निर्माता/कास्ट मीडिया इंटरव्यू, क्लेरिफाइंग स्टेटमेंट्स व कानूनी टीम के साथ जवाब देंगे — जैसा कि Paresh Rawal कर रहे हैं।

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