
यह मुद्दा लोकतांत्रिक अधिकार, प्रशासनिक सुविधा और राजधानी रायपुर की नागरिक व्यवस्था — तीनों से जुड़ा है।
“तूता धरना स्थल” को लेकर विवाद क्या है, कर्मचारी संगठनों की मांग क्यों उठी है, कानून इसमें क्या कहता है, और आगे इसके क्या नतीजे हो सकते हैं।
🏛️ 1. पृष्ठभूमि : “तूता धरना स्थल” क्या है?
- रायपुर के पास तूता (Tuta) नामक जगह को कुछ साल पहले (लगभग 2018–19 के दौरान) सरकार ने राजधानी क्षेत्र में आधिकारिक धरना स्थल घोषित किया था।
- यह स्थल रायपुर शहर से लगभग 17 किलोमीटर दूर, नया रायपुर मार्ग के पास स्थित है।
- इसका उद्देश्य था — शहर के बीच में (जैसे तेलीबांधा, सिविल लाइन, या बूढ़ापारा) होने वाले प्रदर्शनों से ट्रैफिक और प्रशासनिक अव्यवस्था से बचना।
- तब से सारे सरकारी विभाग, यूनियन, और सामाजिक संगठन जब धरना/प्रदर्शन करना चाहते हैं, तो प्रशासन उन्हें “तूता स्थल” पर जाने का निर्देश देता है।
लेकिन कर्मचारियों, यूनियनों और आम नागरिकों को यह असुविधाजनक और प्रभावहीन लग रहा है।

👥 2. छत्तीसगढ़ प्रगतिशील अनियमित कर्मचारी फेडरेशन की मांग
फेडरेशन के प्रदेश अध्यक्ष गोपाल प्रसाद साहू ने रायपुर कलेक्टर को ज्ञापन देकर कहा है —
“जब सरकार जनता की समस्याओं पर ध्यान नहीं देती, तो लोग लोकतांत्रिक तरीके से धरना देते हैं। लेकिन राजधानी से इतनी दूर (तूता में) प्रदर्शन करने से जनता की आवाज़ सरकार तक पहुँचती ही नहीं।”
उनकी प्रमुख मांगें:
- तूता धरना स्थल को हटाकर रायपुर नगर निगम क्षेत्र के भीतर एक नया, स्थायी और सुगम धरना स्थल तय किया जाए।
- वह स्थल ऐसा हो जो दिल्ली के जंतर-मंतर की तरह सुलभ और शहर के बीच में हो, ताकि जनता और मीडिया दोनों तक संदेश पहुँच सके।
- मौजूदा व्यवस्था में लोग 15–20 किमी दूर जाने से वंचित रहते हैं — यह संविधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
⚖️ 3. किस अधिकार का हवाला दिया गया है?
फेडरेशन ने संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) और 19(1)(b) का उल्लेख किया है —
- अनुच्छेद 19(1)(a): अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार
- अनुच्छेद 19(1)(b): शांतिपूर्ण सभा और प्रदर्शन करने का अधिकार
उनका कहना है कि तूता जैसे दूरस्थ स्थान पर प्रदर्शन की अनिवार्यता इन अधिकारों की व्यवहारिक अड़चन पैदा करती है, क्योंकि:
- प्रदर्शन की आवाज़ जनता और मीडिया तक नहीं पहुँचती,
- जनप्रतिनिधि/अधिकारी वहाँ नहीं पहुँचते,
- और लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति का असर खत्म हो जाता है।
🏢 4. प्रशासन और सरकार की मंशा (पूर्व की नीति)
सरकार ने राजधानी रायपुर में धरना-स्थल को शहर से बाहर इसलिए निर्धारित किया था ताकि —
- मुख्य सड़कों पर ट्रैफिक जाम और सार्वजनिक अव्यवस्था न हो,
- सचिवालय और मंत्रालय क्षेत्र में सुरक्षा जोखिम कम रहे,
- और हर छोटे-बड़े संगठन को धरना देने की समान सुविधा मिले।
यह नीति दिल्ली, भोपाल, लखनऊ जैसे बड़े शहरों की तर्ज पर बनाई गई थी, जहाँ सरकार ने प्रदर्शन के लिए सीमित “नामित स्थल” तय किए हैं।
📢 5. कर्मचारी संगठनों और दलों की तर्क
- उनका कहना है कि रायपुर जैसे राज्य की राजधानी में अगर कोई भी प्रदर्शन शहर से दूर किया जाएगा, तो उसका कोई राजनीतिक या सामाजिक प्रभाव नहीं पड़ेगा।
- इससे शासन पर दबाव नहीं बनता, मीडिया कवरेज नहीं मिलती, और लोकतांत्रिक संवाद कमजोर होता है।
- उदाहरण के लिए — दिल्ली का जंतर-मंतर या भोपाल का इकबाल मैदान — शहर के भीतर ही हैं और वहां से आवाज़ सीधे विधानसभा या मंत्रालय तक पहुँचती है।
🧭 6. वैधानिक और व्यावहारिक पहलू
कानून कहता है कि:
- सरकार “कानून-व्यवस्था बनाए रखने” के लिए स्थान तय कर सकती है,
- लेकिन वह ऐसा करते हुए नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों को पूरी तरह समाप्त नहीं कर सकती।
इसीलिए अदालतों ने (जैसे सुप्रीम कोर्ट का रामलीला मैदान केस, और हिमांशु कुमार बनाम राज्य) में कहा है —
“राज्य को अभिव्यक्ति और सभा के अधिकार का सम्मान करते हुए उचित संतुलन बनाना चाहिए।”
यानी:
- सुरक्षा और ट्रैफिक का संतुलन रहे,
- साथ ही आवाज़ शासन तक पहुँच सके।
🏗️ 7. आगे क्या हो सकता है
फेडरेशन ने ज्ञापन सौंप दिया है — अब कलेक्टर/प्रशासन इसे राज्य शासन के गृह या नगरीय प्रशासन विभाग को भेजेगा।
संभावनाएँ:
- समीक्षा समिति बनेगी — जो नए धरना स्थल का सुझाव दे सकती है।
- नगर निगम सीमा में किसी उपयुक्त, नियंत्रित और सुरक्षित जगह को “स्थायी प्रदर्शन क्षेत्र” घोषित किया जा सकता है।
- स्थिति यथावत भी रह सकती है, अगर सरकार सार्वजनिक व्यवस्था को प्राथमिकता मानती है।
📍 8. संभावित विकल्प (चर्चा में आने वाले नाम)
(अब तक आधिकारिक घोषणा नहीं, पर नागरिक समूहों ने सुझाव दिए हैं)
- तेलीबांधा तालाब रोड (पुराने धरना स्थल के आसपास)
- जागरूकता पार्क क्षेत्र, सिविल लाइन
- पुराना पुलिस ग्राउंड क्षेत्र का एक सीमित हिस्सा
इनमें से किसी को भी “नियंत्रित प्रदर्शन क्षेत्र” के रूप में घोषित करने का प्रस्ताव दिया जा सकता है।
🌟 9. छत्तीसगढ़ के लिए लोकतांत्रिक दृष्टि से महत्व
- राजधानी रायपुर प्रशासनिक और राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र है।
- धरना-स्थल का स्थान इस बात का प्रतीक है कि सरकार लोकतांत्रिक असहमति को कितना स्थान देती है।
- अगर यह स्थल नगर निगम क्षेत्र में लौटता है, तो यह “जनता की आवाज़ को निकट लाने” की दिशा में बड़ा कदम माना जाएगा।
🔍 10. निष्कर्ष (सारांश)
| पहलू | सारांश |
|---|---|
| मुद्दा | तूता धरना स्थल को रायपुर शहर के भीतर स्थानांतरित करने की मांग |
| मांगकर्ता | छत्तीसगढ़ प्रगतिशील अनियमित कर्मचारी फेडरेशन |
| मुख्य तर्क | दूरस्थ स्थान से प्रदर्शन अप्रभावी; लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन |
| कानूनी आधार | संविधान अनुच्छेद 19(1)(a) और (b) — अभिव्यक्ति व सभा का अधिकार |
| प्रशासनिक पक्ष | सार्वजनिक व्यवस्था और सुरक्षा कारणों से शहर से बाहर स्थल तय |
| संभावित समाधान | शहर में नियंत्रित, स्थायी, सुगम “जंतर-मंतर मॉडल” स्थल का निर्धारण |



