छत्तीसगढ़
सीएम साय का नक्सली सरेंडर पर बड़ा बयान,गृह मंत्री अमित शाह के दौरे से पहले कहा- पुनर्वास नीति और सरकार की योजनाओं का मिल रहा है लाभ…

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा कि नक्सलियों के आत्मसमर्पण से स्पष्ट है कि उनकी सरकार की पुनर्वास/रिहैबिलिटेशन नीति और विकास संबंधी योजनाओं का लाभ मिल रहा है — राज्य में अब तक सैकड़ों ने आत्मसमर्पण किया है और हालिया बड़े समूह (103 नक्सली) को “मुख्यधारा” से जोड़ने का जिक्र उन्होंने किया।
घटना और वर्तमान संदर्भ — क्या हुआ
- क्या हुआ: 2 अक्टूबर 2025 को बस्तर (Bijapur) जिले में कुल 103 नक्सलियों ने हथियार डाल दिए — इसमें उन लोगों की संख्या भी है जिन पर इनाम घोषित था (कुल मिलाकर ₹1.06 करोड़ तक के इनाम वाले 49 लोग)। यह सामूहिक आत्मसमर्पण क्षेत्रीय सुरक्षा और सरकार की नीतियों के लिहाज़ से बड़ा घटनाक्रम माना जा रहा है।
- तुरंत की आर्थिक मदद: रिपोर्ट्स के मुताबिक़ हर आत्मसमर्पित को तत्काल ₹50,000 का प्रावधान दिया गया है और आगे के पुनर्वास-पैकेज के तहत उन्हें लाभ दिया जाएगा।

छत्तीसगढ़ की पुनर्वास नीति — मुख्य बिंदु (क्या-क्या देती है)
सरकार की नई नीति (Naxal Surrender / Relief & Rehabilitation Policy — 2025) के प्रमुख तत्वों में शामिल हैं:
- तत्काल वित्तीय सहायता — surrender के वक्त एक्जीक्यूटिव/इन्सेंटिव चेक (रिपोर्ट के अनुसार ₹50,000)।
- गैर-आर्म्स जीवन में वापसी के लिए पैकेज: स्किल ट्रेनिंग, स्वरोजगार/लघु उद्यम शुरू करने का सहारा, आवास या कृषि भूमि, और स्वास्थ्य/शिक्षा संबंधी मदद।
- रिहैबिलिटेशन की टाइमलाइन: नीति में कहा गया है कि रिहैबिलिटेशन को 120 दिनों के भीतर सुनिश्चित करने का लक्ष्य है (प्रशासनिक स्तर पर जिला-स्तरीय कमेटियाँ बन रही हैं)।
- लंबी अवधि के प्रोत्साहन: रिपोर्टों में मासिक अनुदान/स्टाइपेंड और प्रशिक्षण के बाद रोज़गार संबंधी मदद के प्रावधान का ज़िक्र भी आया है।
CM साय के बयान का मतलब — पॉलिटिकल व सुरक्षा-कांटेक्स्ट
- संदेश (प्रशासनिक): CM का जोर यह बताने पर है कि “कठोर सुरक्षा उपाय + विकास/पुनर्वास” की रणनीति काम कर रही है — यानी नक्सलियों को कार्रवाई से डर भी है और विकास के विकल्पों से वापसी की प्रेरणा भी।
- टाइमिंग (राजनीतिक): यह बड़ा आत्मसमर्पण और उसका सार्वजनिकरण अमित शाह के बस्तर/छत्तीसगढ़ दौरे (4 अक्टूबर की खबरें) से ठीक पहले/करीब हुआ — ऐसे मौक़ों पर राज्य और केंद्र दोनों मिलकर सुरक्षा-संदेश देना चाहते हैं; इसलिए उच्चस्तरीय नेताओं के दौरे के साथ ये घटनाएँ राजनीतिक तौर पर भी महत्वपूर्ण बन जाती हैं।
यह क्यों मायने रखता है — तात्कालिक और दीर्घकालिक निहितार्थ
- सुरक्षा-लैवल: 103 सदस्यों का समर्पण PLGA/आकर्मी शक्ति में वास्तविक कमी ला सकता है — खासकर जब इनमें कमांडर या इनामधारी शामिल हों। इससे नक्सली ऑपरेशनल क्षमता प्रभावित होगी।
- स्थानीय प्रभाव: अगर रिहैबिलिटेशन त्वरित और पारदर्शी हो — तो यह और अधिक लोगों को आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित कर सकता है। लेकिन अगर पैकेज लागू करने में देरी या गड़बड़ी दिखी तो वापस नाखुशी और आरोप भी बढ़ सकते हैं।
- राजनीति: यह घटना भाजपा सरकार के पक्ष में “सक्सेस स्टोरी” के रूप में दिखाई जा सकती है; विपक्ष इसे इन्फ्रास्ट्रक्चर/लॉ-कॉर्डिनेशन या ‘इवेंट-बेन्चमार्क’ पर सवालों के रूप में उठाएगा — इसलिए सार्वजनिक बयान तेज़ होंगे।
क्या देखना चाहिए (अगले 7–15 दिन)
- रिहैबिलिटेशन की जल्दघोषित कार्ययोजना — जहाँ ये 103 सदस्यों को कहाँ सेंटर/कैंप दिया जा रहा है, किस तरह की ट्रेनिंग/हाउसिंग मिल रही है — यह असल प्रभाव बताएगा।
- किस तरह का सुरक्षा/इंटेलिजेंस रिस्पांस — क्या बचे हुए नक्सली प्रतिक्रिया करेंगे? (एनकाउंटर/रड-ऑप/अधिक आत्मसमर्पण आदि)।
- केंद्र-राज्य समन्वय का सार्वजनिक स्वरूप — अमित शाह/दूसरे केंद्रीय प्रतिनिधि कैसे इसे संकेत के रूप में पेश करते हैं — सिर्फ़ सुरक्षात्मक उपलब्धि या विकास+रिहैबिलिटेशन मिश्रित कथा — यह निगरानी के योग्य है।
साफ़-सी बातें (क्या भरोसा कर सकते हैं / किन बातों पर सतर्क रहें)
- भरोसा करने योग्य: बड़ी संख्या में आत्मसमर्पण और राज्य की नीति के तहत तत्काल ₹50,000 देने की रिपोर्ट कई प्रतिष्ठित समाचारों ने दिखाई है — ये बेसिक फैक्ट्स विश्वसनीय दिखते हैं।
- सतर्क रहने की ज़रूरत: यह कि ये आत्मसमर्पण “कितने स्थायी” होंगे — यानी क्या ये लोग लंबे समय तक मुख्यधारा में बने रहेंगे या फिर कुछ समय बाद वापस जंगल में चले जाएँगे — यह तभी साफ़ होगा जब रिहैबिलिटेशन के ठोस नतीजे (रोज़गार, आवास, सामाजिक स्वीकृति) सामने आएँ।