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भारत–अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार समझौते की 25–29 अगस्त वाली बैठक टल गई…

भारत–अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) की 25–29 अगस्त (नई दिल्ली) वाली बैठक टल गई/कॉल-ऑफ हो गई। यह वह दौर (छठा) था, जिसे लेकर अमेरिकी टीम के आने की योजना थी। अब बातचीत में देरी तय मानी जा रही है—और ठीक इससे पहले 27 अगस्त से भारतीय वस्तुओं पर अतिरिक्त 25% अमेरिकी टैरिफ लागू होने वाला है, जिससे कुछ वस्तुओं पर कुल ड्यूटी ~50% तक पहुँच जाएगी।

क्या हो रहा है—मुख्य बातें

अमेरिकी टीम की यात्रा रद्द/स्थगित: 25–29 अगस्त के लिए तय वार्ताएँ टल गईं; नई तिथियाँ नहीं दी गईं। टीम का नेतृत्व असिस्टेंट USTR ब्रेंडन लिंच को करना था। यह BTA की छठी बैठक होती।

टैरिफ एस्केलेशन: 6 अगस्त को अमेरिका ने भारत पर अतिरिक्त 25% टैरिफ की घोषणा की—यह 27 अगस्त से प्रभावी होगा और पहले से लगे 25% के ऊपर लगेगा; कुल प्रभाव ~50% तक। कारण के तौर पर वॉशिंगटन ने भारत के रूसी कच्चे तेल आयात को उद्धृत किया।

स्टिकिंग पॉइंट्स: अमेरिका कृषि-डेयरी जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में बाज़ार पहुँच चाहता है; भारत छोटे-सीमांत किसानों की आजीविका का हवाला देकर इससे इंकार कर रहा है।

स्थिति कहाँ तक पहुँची थी?

  • BTA पर 5 दौर की बातचीत पूरी हो चुकी है; छठा दौर अब आगे के लिए टला।
  • दोनों पक्ष 2025 के शरद (Sep–Oct) तक किसी पहले चरण/फर्स्ट ट्रांचे की रूपरेखा चाह रहे थे—वह टाइमलाइन अब झटके में है।

व्यापार के आँकड़े (ताज़ा)

  • अप्रैल–जुलाई 2025 में अमेरिका को भारत का निर्यात 21.64% बढ़कर $33.53 अरब; आयात 12.33% बढ़कर $17.41 अरब। यही बेस अब नए टैरिफ के दबाव में आएगा।

किन सेक्टरों पर तुरंत असर पड़ सकता है?

  • डायमंड पॉलिशिंग, झींगा (श्रिम्प), होम-टेक्सटाइल्स, कार्पेट—कम मार्जिन वाले ये सेक्टर 25%+25% की स्टैक्ड ड्यूटी से सबसे पहले दबाव में आ सकते हैं। आगे चलकर रेडी-मेड गारमेंट्स, केमिकल/एग्रो-केमिकल्स, कैपिटल गुड्स, सोलर जैसी श्रेणियों पर भी व्यावहारिक असर पड़ सकता है।

आगे क्या?

  • वार्ता-रीसेट: नई तारीख़ के संकेत अभी नहीं हैं; फिलहाल संदेश यह है कि टैरिफ लागू रहते हुए ही बातचीत की ज़मीन तलाशनी होगी।
  • भारत की प्रतिक्रिया: सरकार गैर-कृषि क्षेत्रों में सीमित बाज़ार पहुँच ऑफ़र पर पुनर्विचार और निर्यातकों के लिए रिलीफ़ पैकेज/डायवर्सिफ़िकेशन जैसे उपायों पर काम कर रही है।

आपके लिए व्यावहारिक संकेत (एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट)

  • कॉन्ट्रैक्ट्स/प्राइसिंग: 27 अगस्त की effective-date को ध्यान में रखकर FOB/CIF प्राइस, डिलिवरी टर्म्स और टैरिफ-क्लॉज़ रीनेगोशिएट करें।
  • HS-लाइन चेक: अपने HS कोड पर लागू कुल ड्यूटी (मौजूदा + अतिरिक्त 25%) की नेट-लैंडेड-कॉस्ट इम्पैक्ट शीट बनाएँ; लो-मार्जिन ऑर्डर रोकना पड़ सकता है।
  • मार्केट डायवर्सिफ़िकेशन: EU, मध्य-पूर्व, एशिया-पैसिफ़िक में समान-स्पेक मार्केट्स की खोज अभी शुरू कर दें (लॉजिस्टिक-लीड टाइम को देखते हुए)।

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