
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और भाजपा (बीजेपी) के बीच राजनैतिक टकराव का प्रमुख विषय बन चुका है – आरक्षण संशोधन बिलों की वैधता, मंजूरी और क्रियान्वयन। यह विवाद हाल के विधानसभा मानसून सत्र (14–18 जुलाई 2025) के साथ और तेज़ हो गया है। चलिए इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं।

🔹 पृष्ठभूमि: आरक्षण बढ़ाने वाला बिल (2022)
➤ कांग्रेस सरकार का कदम:
- नवंबर 2022 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार (भूपेश बघेल के नेतृत्व में) ने एससी, एसटी, ओबीसी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए आरक्षण प्रतिशत बढ़ाने वाला एक संविधान संशोधन विधेयक पारित किया था।
- संशोधित आरक्षण संरचना:
- एसटी (Scheduled Tribes): 32%
- एससी (Scheduled Castes): 13%
- ओबीसी (Other Backward Classes): 27%
- EWS (सामान्य वर्ग): 4%
- कुल आरक्षण: 76%
यह देश में सबसे ज्यादा आरक्षण प्रतिशतों में से एक था।
⚖️ समस्या कहाँ आई?
- यह बिल राज्यपाल की मंज़ूरी के बिना लागू नहीं हो पाया।
- राज्यपाल अनुसुइया उइके (तब), और बाद में नए राज्यपाल रमेन डेका ने बिलों पर संवैधानिक, विधिक और सामाजिक आधार पर सवाल उठाए।
- उनका तर्क था कि:
- कुल आरक्षण 50% से ज्यादा नहीं हो सकता (Supreme Court की मर्यादा: Indra Sawhney केस, 1992)।
- केंद्र सरकार से संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता हो सकती है।
- जनगणना आधारित डेटा और न्यायिक समीक्षा के बिना ऐसा आरक्षण टिक नहीं सकता।
🔸 बीजेपी की स्थिति (2023-2025):
- दिसंबर 2023 में बीजेपी सत्ता में आई (विष्णुदेव साय की सरकार)।
- लेकिन नया शासन इस संशोधित आरक्षण बिल को स्पष्ट समर्थन नहीं दे रहा, बल्कि यह कहता है:
- हम संवैधानिक तरीके से आरक्षण का समाधान खोजेंगे।
- राज्यपाल से चर्चा कर संशोधित और वैध प्रारूप में आरक्षण लागू करेंगे।
- पहले की कांग्रेस सरकार ने लोकलुभावन और असंवैधानिक ढंग से काम किया।
🔹 कांग्रेस का आक्रामक रुख:
- कांग्रेस लगातार मांग कर रही है कि:
- बीजेपी सरकार 2022 में पास बिलों को तुरंत लागू करे।
- आरक्षण के बिना आदिवासी, पिछड़े और गरीब वर्गों के हक छीने जा रहे हैं।
- कांग्रेस इसे जनता का अधिकार और संविधान का संरक्षण मानती है।
- भूपेश बघेल और चरणदास महंत जैसे नेता आरक्षण आंदोलन की चेतावनी दे रहे हैं।
🧾 राजनीतिक टकराव का सारांश:
मुद्दा | कांग्रेस | बीजेपी |
---|---|---|
आरक्षण प्रतिशत (76%) | समर्थन और तत्काल लागू करने की मांग | संशोधन के पक्ष में नहीं, विधिक समाधान चाहती है |
राज्यपाल की मंजूरी | अनावश्यक देरी का आरोप | प्रक्रिया की पवित्रता की बात |
संविधान से मेल | कांग्रेस कहती है – सामाजिक न्याय का मामला | बीजेपी कहती है – सुप्रीम कोर्ट सीमा (50%) के खिलाफ |
रणनीति | सत्र में हंगामा, जनआंदोलन की चेतावनी | विधिक सलाह, केन्द्र से परामर्श |
🔎 निष्कर्ष:
छत्तीसगढ़ में आरक्षण का मुद्दा सिर्फ सामाजिक न्याय नहीं बल्कि राजनीतिक अस्तित्व और जनाधार से जुड़ा हुआ है।
जहाँ कांग्रेस इसे जनता के हक का मामला बता रही है, वहीं बीजेपी संवैधानिक सीमाओं और न्यायिक प्रक्रिया का हवाला दे रही है।
विधानसभा मानसून सत्र इस मुद्दे को लेकर गर्मागर्म बहसों और आरोप-प्रत्यारोपों का मंच बना हुआ है।