टेक्नोलॉजी
भारत – स्पेस टेक्नोलॉजी में कदम…
- HAL को स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) बनाने का ठेका मिला है। यह 500 किलोग्राम तक के वज़न के उपग्रहों के लिए लॉन्च सुविधा प्रदान करेगा। इससे भारत का स्पेस सेक्टर प्राइवेट कंपनियों के लिए नया मंच बनेगा.
- HAL को SSLV बनाने का ठेका – क्या है महत्व?
ठेका राशि: ₹511 करोड़ (लगभग $59 मिलियन) का समझौता HAL ने जीता है, जिसे IN‑SPACe (Indian National Space Promotion and Authorisation Centre) ने जारी किया ।
Payload क्षमता: यह रॉकेट 500 kg तक के सैटेलाइट्स को लो-एर्थ ऑर्बिट (LEO) में भेज सकता है ।
🧩 टेक्टनोलॉजी ट्रांसफ़र और निर्माण योजना
ISRO से SSLV टेक्नोलॉजी ट्रांसफर दो वर्षों में पूरा होगा, जिसमें HAL को कम से कम दो टेस्ट रॉकेट बनाने होंगे ।
2027 (अगस्त) तक HAL इसकी मास उत्पादन और वाणिज्यीकरण शुरू कर देगा। इसके बाद सालाना अनुमानित 6–12 लॉन्च का लक्ष्य .
🌐 वैश्विक बाज़ार और प्राइवेट क्षेत्र का अवसर
SSLV लॉन्च–ऑन–डिमांड सेवा स्टार्टअप्स, शैक्षणिक संस्थानों और छोटे सैटेलाइट ऑपरेटरों के लिए बेहद आकर्षक है ।
HAL का उद्देश्य घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय ग्राहकों को प्रतिस्पर्धी दरों पर सेवा देना है ।
📈 भारत में स्पेस सेक्टर की प्रगति
इस पहल ने भारत के स्पेस सेक्टर को प्राइवेट कंपनी के नेतृत्व में आगे बढ़ने का मार्ग दिखाया है ।
साथ ही यह Make in India और वैश्विक $44 बिलियन स्पेस मार्केट में भारत के हिस्से को बढ़ाने की दिशा में कदम
📅 क्या होगा आगे?
चरण
विवरण
टेक ट्रांसफर (2025–27)
ISRO की ट्रेनिंग, दो टेस्ट रॉकेट निर्माण
स्व-निर्माण (2027 के बाद)
मॉडिफाइड डिजाइन, खुद की सप्लाई चैन
लॉन्च तालिका
शुरुआती लक्ष्य: 6–8 लॉन्च/साल; वृद्धि कर 10–12 तक
इंफ्रास्ट्रक्चर
Tamil Nadu में निर्माण यूनिट और 3rd लॉन्च पैड की तैयारी
🔍 विशेषज्ञों की राय
IN-SPACe चेयरमैन Pawan Goenka:
“Our vision is to drive the growth of the space sector through increased private participation… aiming for a launch every two weeks.”
Industry observers:
“HAL का कॉन्ट्रैक्ट प्राइवेट सेक्टर के लिए अवसर खोलेगा” — startups उत्साहित हैं ।
हालांकि, कुछ ने कहा कि अभी यह प्राइवेटाइजेशन का पूर्ण स्वरूप नहीं बना है ।
✅ सारांश
HAL है पहले भारतीय शीर्ष स्तरीय वायु–सैन्य–उद्योग की कंपनी जिसने SSLV तैयार करने का ठेका जीता।
ISRO ने टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करके इसे वाणिज्यिक लॉन्च मॉडल में बदला।
इससे India का small-satellite लॉन्च इकोसिस्टम मजबूत होगा; private कंपनियों के लिए नए अवसर खुलेंगे।
वैश्विक छोटे सैटेलाइट मार्केट में भारत की हिस्सेदारी बढ़ने की उम्मीद है।
