‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति पर साय सरकार, शराब घोटाले पर HC का बड़ा फैसला, 13 याचिकाएं खारिज
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति पर काम कर रही है. इस नीति पर छत्तीसगढ़ की उच्च न्यायालय एक फैसले ने भी मुहर लगाई है. प्रदेश में शराब घोटाले के आरोपियों के खिलाफ ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) और एसीबी-ईओडब्ल्यू (अखिल भारतीय भ्रष्टाचार विरोधी ब्यूरो और आर्थिक अपराध शाखा) ने कानूनी कार्रवाई शुरू की है. कुछ आरोपियों ने इस कार्रवाई के खिलाफ बिलासपुर उच्च न्यायालय में याचिकाएं दायर की थीं. उच्च न्यायालय ने इन याचिकाओं पर फैसला सुनाया और सभी 13 याचिकाओं को खारिज कर दिया. हाईकोर्ट ने पहले दिए गए अंतरिम राहत के आदेश को भी रद्द कर दिया है. उच्च न्यायालय ने माना कि सबूतों के आधार पर एजेंसियों ने एफआईआर की है.
शराब घोटाले से जुड़ी एक जांच के तहत अखिल भारतीय भ्रष्टाचार विरोधी ब्यूरो और आर्थिक अपराध शाखा जैसी सरकारी एजेंसीयों ने कई लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की हैं. इन लोगों में पूर्व आईएएस अधिकारी अनिल टुटेजा, उनके बेटे यश टुटेजा, अनवर ढेबर, विधु गुप्ता, निदेश पुरोहित, निरंजन दास और एपी त्रिपाठी शामिल थे. लेकिन इन लोगों ने इस मामले में हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर की थी. हाईकोर्ट ने इन naga788 याचिकाओं पर सुनवाई की. जिसके बाद 10 जुलाई को सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. जिस पर उच्च न्यायालय ने आज फैसला सुनाया. कोर्ट ने अपने फैसले में आरापियों के द्वारा दायर की गई याचिकाओं को खारिज कर दिया. तो इस तरह आरोपियों के खिलाफ एफआईआर को रद्द नहीं किया जाएगा और जांच जारी रहेगी.
साय सरकार ने रखा पक्ष
उच्च न्यायालय में शराब घोटाले से जुड़े मामलों की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की बेंच द्वारा की गई. राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता विवेक शर्मा ने अदालत में अपना पक्ष रखा. इस मामले में कुल 13 याचिकाएं दायर की गई थीं. जिनमें से 6 याचिकाएं ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) के खिलाफ और 7 याचिकाएं ईओडब्ल्यू (आर्थिक अपराध शाखा) और एसीबी (अखिल भारतीय भ्रष्टाचार विरोधी ब्यूरो) के खिलाफ थीं. इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया था कि ईडी और ईओडब्ल्यू-एसीबी की ओर से की जा रही जांच और एफआईआर गलत है और इन्हें रद्द किया जाना चाहिए.
2161 करोड़ रुपए का है शराब घोटाला
एक याचिका के दौरान उच्च न्यायालय ने अनिल टुटेजा को अस्थायी राहत प्रदान की थी. लेकिन अब वह भी रद्द कर दी गई है. अतिरिक्त महाधिवक्ता विवेक शर्मा ने कोर्ट में अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार के दौरान अनवर ढेबर ने अपनी राजनीतिक पहुंच का गलत इस्तेमाल किया है. विवेक शर्मा ने आरोप लगाया कि एपी त्रिपाठी को सीएसएमसीएल (CSMCL) का मैनेजिंग डायरेक्टर (MD) नियुक्त कराया था. इसके बाद, एक सिंडिकेट ने अधिकारियों, कारोबारियों और राजनीतिक रसूख वाले लोगों के साथ मिलकर 2161 करोड़ रुपए का बड़ा घोटाला किया.
छत्तीसगढ़ में करोड़ों का नुकसान
छत्तीसगढ़ में शराब घोटाले की जांच चल रही है. जिसमें ईडी ने एसीबी (अखिल भारतीय भ्रष्टाचार विरोधी ब्यूरो) में एफआईआर दर्ज कराई है. इस एफआईआर में कहा गया है कि घोटाला दो हजार करोड़ रुपए से भी अधिक का है. ईडी की जांच में यह पाया गया कि तत्कालीन भूपेश बघेल सरकार के दौरान ये घोटाला किया गया है. ईडी ने उन लोगों के नाम भी बताये, जिनके साथ मिलकर ये घोटाला किया गया. उन्होंने कहा कि आईएएस अधिकारी अनिल टुटेजा, आबकारी विभाग के मैनेजिंग डायरेक्टर (एमडी) एपी त्रिपाठी, और कारोबारी अनवर ढेबर के एक अवैध सिंडिकेट ने मिलकर इस घोटाले को अंजाम दिया. एसीबी के अनुसार 2019 से 2022 के बीच, सरकारी शराब दुकानों से अवैध शराब बेची गई. इसके लिए डुप्लीकेट होलोग्राम का इस्तेमाल किया गया. जिससे सरकार को करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ. ईडी ने इस मामले में सबसे पहले मई 2023 के पहले सप्ताह में अनवर ढेबर को गिरफ्तार किया. जांच के अनुसार अनवर ढेबर ने 2019 से 2022 के बीच शराब के कारोबार से दो हजार करोड़ रुपए का अवैध धन बनाया.
जांच में नए खुलासे
यह अवैध धन उसने अपने साथी विकास अग्रवाल के माध्यम से दुबई में खपाया था. ईडी ने यह भी कहा कि अनवर ढेबर ने अपने सहयोगियों को पैसे प्रतिशत के हिसाब से बांटे और बड़ी रकम अपने राजनीतिक नेताओं को दी. इसके बाद आबकारी विभाग के अधिकारी एपी त्रिपाठी, कारोबारी त्रिलोक ढिल्लन, नितेश पुरोहित, और अरविंद सिंह को भी गिरफ्तार किया गया था. उत्तर प्रदेश की स्पेशल टास्क फोर्स ने पूछताछ की. जिसमें अनवर ढेबर और एपी त्रिपाठी ने खुलासा किया कि इस शराब घोटाले में सबसे बड़ा लाभ शराब निर्माता कंपनियों को हुआ. जानकारी के अनुसार नोएडा में स्थित विधु की कंपनी, मेसर्स प्रिज्म होलोग्राफी सिक्युरिटी फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड, को होलोग्राम बनाने का टेंडर मिला था. इस कंपनी ने डुप्लीकेट होलोग्राम बनाए. जो वास्तविक होलोग्राम की तरह दिखते थे. इन होलोग्राम को फिर शराब बनाने वाली डिस्टिलरीज (शराब की फैक्ट्रियों) को भेजा गया.
शराब निर्माता के खिलाफ कार्रवाई की उम्मीद
डिस्टिलरीज ने इन डुप्लीकेट होलोग्राम को अवैध शराब की बोतलों पर चिपका दिया. ईडी और ईओडब्ल्यू ने इस मामले में शामिल डिस्टिलरीज के संचालकों और उनसे जुड़े अन्य लोगों को भी आरोपी बनाया है. हालांकि, अब तक इनमें से किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है. आज उच्च न्यायालय के फैसले के बाद उम्मीद की जा रही है कि नकली होलोग्राम मामले में शराब निर्माता कंपनियों के खिलाफ भी जल्दी कार्रवाई की जाएगी.