बिहार विधानसभा चुनाव 2025: महिलाओं पर केंद्रित दोनों गठबंधनों की रणनीति | ‘तेजस्वी प्रण’ बनाम ‘एनडीए संकल्प पत्र’ में किसका पलड़ा भारी?

पटना:
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की रणभेरी बज चुकी है और 243 सीटों पर सियासी दलों की जंग तेज हो गई है।
इस बार चुनाव का सबसे अहम पहलू महिला वोट बैंक बनकर उभरा है — क्योंकि राज्य में लगभग 3.5 करोड़ महिला मतदाता हैं, जो कुल 7.41 करोड़ वोटरों का लगभग 47% हिस्सा हैं।
ऐसे में महागठबंधन और एनडीए, दोनों ही गठबंधनों ने अपने घोषणा पत्रों में महिलाओं को चुनाव का केंद्र बिंदु बना दिया है।

महागठबंधन का ‘तेजस्वी प्रण’ – महिलाओं को “सम्मानजनक वेतन और सुरक्षा” का वादा
महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव ने घोषणा पत्र जारी करते हुए कहा कि उनकी सरकार बनने पर राज्य की जीविका दीदियों को मिलेगा सरकारी कर्मचारी का दर्जा और ₹30,000 मासिक वेतन।
वर्तमान में ये महिलाएं स्वयं सहायता समूहों (SHGs) के माध्यम से काम करती हैं, जिनकी आय बेहद सीमित है।
तेजस्वी यादव के प्रमुख वादे –
जीविका दीदियों को नियमित वेतनभोगी कर्मचारी का दर्जा।
हर जिले में महिला हेल्पडेस्क और विशेष महिला थाने सशक्त किए जाएंगे।
‘महिला रोजगार मिशन’ की शुरुआत कर महिलाओं को स्थानीय स्तर पर रोजगार से जोड़ा जाएगा।
महिला सुरक्षा और सामाजिक सम्मान को प्राथमिकता दी जाएगी।
तेजस्वी ने कहा —
“बिहार की महिलाएं ही असली शक्ति हैं। हमारी सरकार बनेगी तो दीदियों को सम्मानजनक वेतन और सुरक्षा मिलेगी।”
एनडीए का ‘संकल्प पत्र 2025’ – आत्मनिर्भर और उद्यमी महिला का वादा
वहीं दूसरी ओर एनडीए ने अपने संकल्प पत्र में महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने पर फोकस किया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि “महिलाओं की भागीदारी के बिना बिहार का विकास अधूरा है।”
एनडीए के मुख्य वादे –
मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत महिलाओं को ₹2 लाख तक की सहायता राशि।
‘लखपति दीदी’ योजना के तहत 1 करोड़ महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना।
‘मिशन करोड़पति’ के तहत चुनी हुई महिला उद्यमियों को बैंक लोन, प्रशिक्षण और डिजिटल मार्केटिंग की सुविधाएं।
महिलाओं को छोटे व्यवसाय, दुकान या उद्योग शुरू करने के लिए स्वरोजगार सहायता।
एनडीए का फोकस महिलाओं को “कमाई से करियर तक” ले जाने पर है।
चुनावी जंग में महिला मतदाता बने निर्णायक
बिहार में हर बार की तरह इस बार भी महिला मतदाताओं का झुकाव चुनाव परिणाम तय करने वाला फैक्टर माना जा रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि 2010 और 2015 के चुनावों में भी महिलाओं की रिकॉर्ड भागीदारी ने सत्ता के समीकरण बदले थे,
और इस बार दोनों गठबंधन उन्हें “वोटर नहीं, परिवर्तन की ताकत” मानकर मैदान में उतरे हैं।
बड़ा सवाल — वादे कितने टिकाऊ?
दोनों गठबंधनों ने महिलाओं के लिए रोजगार, सुरक्षा और सम्मान की गारंटी दी है,
लेकिन जनता के मन में सवाल वही है — क्या ये वादे ज़मीन पर उतरेंगे या सिर्फ चुनावी घोषणाओं तक सीमित रह जाएंगे?
 
				


